Sunday, October 17, 2010
मानवता हितार्थ के निहितार्थ?
मानवता हितार्थ के निहितार्थ?
वामपंथियों ने स्वांग रचाया, पहन मुखौटा मानवता का;
ये ही तो देश को बाँट रहे हैं, पहन मुखौटा मानवता का !!
मैं अच्छा हूँ बुरा विरोधी, कहने को तो सब ही कहते हैं;
नकली चेहरों के पीछे किन्तु, जो असली चेहरे रहते हैं;
आओ अन्दर झांक के देखें,और सच की पहचान करें;
कौन है मानवतावादी और, शत्रु कौन, इसकी जाँच करें!
मानवतावादी बनकर जो हमको, प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं;
चर- अचर, प्रकृति व पाषाण, यहाँ सारे ही पूजे जाते हैं;
है केवल हिन्दू ही जो मानता, विश्व को एक परिवार सा;
किसके कण कण में प्रेम बसा, यह विश्व है सारा जानता!
यही प्रेम जो हमारी शक्ति है कभी दुर्बलता न बन जाये;
अहिंसक होने का अर्थ कहीं, कायरता ही न बन जाये ?
इसीलिए जब भी शक्ति की, हम पूजा करने लग जाते हैं;
तब कुछ मूरख व शत्रु हमारे, दोनों थर्राने लग जाते हैं!
शत्रु भय से व मूरख भ्रम से, चिल्लाते जो देख आइना;
मानवता के रक्षक को ही वो, मानवता का शत्रु बतलाते;
नहीं शत्रु हम किसी देश के, किसी धर्म औ मानवता के;
चाहते इस सोच की रक्षा हेतु, हिंदुत्व को रखें बचाके !
अमेरिका में यदि अमरीकी ही अस्तित्व पे संकट आए;
52 मुस्लिम देशों में ही जब, इस्लाम को कुचला जाये;
तब जो हो सकता है दुनिया में, वो भारत में हो जाये;
जब हिन्दू के अस्तित्व पर भारत में ही संकट छाये!
जब हिन्दू के अस्तित्व पर भारत में ही संकट छाये!!पूरा परिवेश पश्चिमकी भेंट चढ़ गया है.उसे संस्कारित,योग,आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवनको उचित शैली में ढाल सकते हैं! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
Saturday, September 18, 2010
शर्मनिरपेक्ष नेताओं को समर्पित शर्मनिरपेक्षता तिलक राज रेलन
शर्मनिरपेक्ष नेताओं को समर्पित शर्मनिरपेक्षता तिलक राज रेलन
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!
जो तिरंगा है देश का मेरे, जिसको हमने स्वयं बनाया था;
हिन्दू हित की कटौती करने को, 3 रंगों से वो सजाया था;
जिसकी रक्षा को प्राणों से बड़ा मान, सेना दे देती बलिदान;
उस झण्डे को जलाते जो, और करते हों उसका अपमान;
शर्मनिरपेक्ष बने वोटों के कारण, साथ ऐसों का दिया करते हैं;
मानवता का दम भरते हैं, क्यों फिर भी शर्म नहीं आती?
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष....
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!
वो देश को आग लगाते हैं, हम उनपे खज़ाना लुटाते हैं;
वो खून की नदियाँ बहाते हैं, हम उन्हें बचाने आते हैं;
वो सेना पर गुर्राते हैं, हम सेना को अपराधी बताते हैं;
वो स्वर्ग को नरक बनाते हैं, हम उनका स्वर्ग बसाते हैं;
उनके अपराधों की सजा को,रोक क़े हम दिखलाते हैं;
अपने इस देश द्रोह पर भी, हमको है शर्म नहीं आती!
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष...
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!
इन आतंकी व जिहादों पर हम गाँधी के बन्दर बन जाते;
कोई इन पर आँच नहीं आए, हम खून का रंग हैं बतलाते;
(सबके खून का रंग लाल है इनको मत मारो)
अपराधी इन्हें बताने पर, अपराधी का कोई धर्म नहीं होता;
रंग यदि आतंक का है, भगवा रंग बताने में हमको संकोच नहीं होता;
अपराधी को मासूम बताके, राष्ट्र भक्तों को अपराधी;
अपने ऐसे दुष्कर्मों पर, क्यों शर्म नहीं मुझको आती;
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष....
कारनामे घृणित हों कितने भी, शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!
47 में उसने जो माँगा वह देकर भी, अब क्या देना बाकि है?
देश के सब संसाधन पर उनका अधिकार, अब भी बाकि है;
टेक्स हमसे लेकर हज उनको करवाते, धर्म यात्रा टेक्स अब भी बाकि है;
पूरे देश के खून से पाला जिस कश्मीर को 60 वर्ष;
थाली में सजा कर उनको अर्पित करना अब भी बाकि है;
फिर भी मैं देश भक्त हूँ, यह कहते शर्म मुझको मगर नहीं आती!
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष...
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!
यह तो काले कारनामों का,एक बिंदु ही है दिखलाया;
शर्मनिरपेक्षता के नाम पर कैसे है देश को भरमाया?
यह बतलाना अभी शेष है, अभी हमने कहाँ है बतलाया?
हमारा राष्ट्र वाद और वसुधैव कुटुम्बकम एक ही थे;
फिर ये सेकुलरवाद का मुखौटा क्यों है बनवाया?
क्या है चालबाजी, यह अब भी तुमको समझ नहीं आती ?
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष...
कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !
मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !! शर्म मुझको तभी नहीं आती !!पूरा परिवेश पश्चिमकी भेंट चढ़ गया है.
उसे संस्कारित,योग,आयुर्वेद का अनुसरण कर
हम अपने जीवनको उचित शैली में ढाल सकते हैं!
आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
Saturday, September 11, 2010
आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु
आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु मैकाले व वामपंथियों से प्रभावित कुशिक्षा से पीड़ित समाज का एक वर्ग, जिसे देश की श्रेष्ठ संस्कृति, आदर्श, मान्यताएं, परम्पराएँ, संस्कारों का ज्ञान नहीं है अथवा स्वीकारने की नहीं नकारने की शिक्षा में पाले होने से असहजता का अनुभव होता है! उनकी हर बात आत्मग्लानी की ही होती है! स्वगौरव की बात को काटना उनकी प्रवृति बन चुकी है! उनका विकास स्वार्थ परक भौतिक विकास है, समाज शक्ति का उसमें कोई स्थान नहीं है! देश की श्रेष्ठ संस्कृति, परम्परा व स्वगौरव की बात उन्हें समझ नहीं आती!
किसी सुन्दर चित्र पर कोई गन्दगी या कीचड़ के छींटे पड़ जाएँ तो उस चित्र का क्या दोष? हमारी सभ्यता "विश्व के मानव ही नहीं चर अचर से,प्रकृति व सृष्टि के कण कण से प्यार " सिखाती है..असभ्यता के प्रदुषण से प्रदूषित हो गई है, शोधित होने के बाद फिर चमकेगी, किन्तु हमारे दुष्ट स्वार्थी नेता उसे और प्रदूषित करने में लगे हैं, देश को बेचा जा रहा है, घोर संकट की घडी है, आत्मग्लानी का भाव हमे इस संकट से उबरने नहीं देगा. मैकाले व वामपंथियों ने इस देश को आत्मग्लानी ही दी है, हम उसका अनुसरण नहीं निराकरण करें, देश सुधार की पहली शर्त यही है, देश भक्ति भी यही है !
पूरा परिवेश पश्चिमकी भेंट चढ़ गया है.
उसे संस्कारित,योग,आयुर्वेद का अनुसरण कर
हम अपने जीवनको उचित शैली में ढाल सकते हैं!
आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
Thursday, July 22, 2010
चंद्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 - 27 फरवरी 1931) - शत शत नमन!
सभी देश भक्तों को हमारे प्रेरणा पुंज पत. चंदर शेखर आजाद के 96 वे जन्म दिवस की शुभकामनाएं
चंद्रशेखर आजाद (23 जुलाई 1906 - 27 फरवरी 1931) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अत्यंत सम्मानित और लोकप्रिय क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भगत सिंह के अनन्यतम साथियों में से थे। असहयोग आंदोलन समाप्त होने के बाद चंद्रशेखर आजाद की विचारधारा में परिवर्तन आ गया और वे क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिंदुस्तान सोशल रिपब्लिकन आर्मी में सम्मिलित हो गए। उन्होंने कई क्रांतिकारी गतिविधियों जैसे काकोरी काण्ड तथा सांडर्स-वध को पूर्णता दी।
जन्म तथा प्रारंभिक जीवन
चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले भावरा गाँव में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ। उस समय भावरा अलीराजपुर राज्य की एक तहसील थी। आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी संवत 1956 के अकाल के समय अपने निवास उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गाँव को छोडकर पहले अलीराजपुर राज्य में रहे और फिर भावरा में बस गए। यहीं चंद्रशेखर का जन्म हुआ। वे अपने माता पिता की पाँचवीं और अंतिम संतान थे। उनके भाई बहन दीर्घायु नहीं हुए। वे ही अपने माता पिता की एकमात्र संतान बच रहे। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। पितामह मूलतः कानपुर जिले के राउत मसबानपुर के निकट भॉती ग्राम के निवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण तिवारी वंश के थे।संस्कारों की धरोहर
चन्द्रशेखर आजाद ने अपने स्वभाव के बहुत से गुण अपने पिता पं0 सीताराम तिवारी से प्राप्त किए। तिवारी जी साहसी, स्वाभिमानी, हठी और वचन के पक्के थे। वे न दूसरों से अन्याय कर सकते थे और न स्वयं अन्याय सहन कर सकते थे। भावरा में उन्हें एक सरकारी बगीचे में चौकीदारी का काम मिला। भूखे भले ही बैठे रहें पर बगीचे से एक भी फल तोड़कर न तो स्वयं खाते थे और न ही किसी को खाने देते थे। एक बार तहसीलदार ने बगीचे से फल तुड़वा लिए तो तिवारी जी बिना पैसे दिए फल तुड़वाने पर तहसीलदार से झगड़ा करने को तैयार हो गए। इसी जिद में उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। एक बार तिवारी जी की पत्नी पडोसी के यहाँ से नमक माँग लाईं इस पर तिवारी जी ने उन्हें खूब डाँटा और 4 दिन तक सबने बिना नमक के भोजन किया। ईमानदारी और स्वाभिमान के ये गुण आजाद ने अपने पिता से विरासत में सीखे थे।आजाद का बाल्य-काल
1919 मे हुए जलियां वाला बाग नरसंहार ने उन्हें काफी व्यथित किया 1921 मे जब महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन प्रारंभ किया तो उन्होने उसमे सक्रिय योगदान किया। यहीं पर उनका नाम आज़ाद प्रसिद्ध हुआ । इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे bandi हुए और उन्हें 15 बेतों की सज़ा मिली। सजा देने वाले मजिस्ट्रेट से उनका संवाद कुछ इस तरह रहा -तुम्हारा नाम ? आज़ाद
पिता का नाम? स्वाधीन
तुम्हारा घर? जेलखाना
मजिस्ट्रेट ने जब 15 बेंत की सजा दी तो अपने नंगे बदन पर लगे हर बेंत के साथ वे चिल्लाते - महात्मा गांधी की जय। बेंत खाने के बाद 3 आने की जो राशि पट्टी आदि के लिए उन्हें दी गई थी, को उन्होंने जेलर के ऊपर वापस फेंका और लहूलुहान होने के बाद भी अपने एक दोस्त डॉक्टर के यहाँ जाकर मरहमपट्टी करवायी।
सत्याग्रह आन्दोलन के मध्य जब फरवरी 1922 में चौराचौरी की घटना को आधार बनाकर गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो भगतसिंह की bhanti आज़ाद का भी काँग्रेस से मोह भंग हो गया और वे 1923 में शचिन्द्र नाथ सान्याल द्वारा उत्तर भारत के क्रांतिकारियों को लेकर बनाए गए दलहिन्दुस्तानी प्रजातात्रिक संघ (एच आर ए) में शामिल हो गए। इस संगठन ने जब गाँवों में अमीर घरों पर डकैतियाँ डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाया जा सके तो तय किया कि किसी भी औरत के उपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गाँव में रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आज़ाद का तमंचा छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बाद bhi आज़ाद ने अपने niyam के कारण उसपर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के 8 सदस्यों, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल शामिल थे, की बड़ी दुर्दशा हुई क्योंकि पूरे गाँव ने उनपर हमला कर दिया था। इसके बाद दल ने केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का nirnay किया। 1 जनवरी 1925 को दल ने देशभर में अपना बहुचर्चित पर्चा द रिवोल्यूशनरी (क्रांतिकारी) बांटा जिसमें दल की नीतियों का ullekh था। इस parche में रूसी क्रांति की चर्चा मिलती है और इसके लेखक सम्भवतः शचीन्द्रनाथ सान्याल थे।
अंग्रेजों की नजर में
इस संघ की नीतियों के अनुसार 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया गया । लेकिन इससे पहले ही अशफ़ाक उल्ला खान ने ऐसी घटनाओं का विरोध किया था क्योंकि उन्हें डर था कि इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाड़ने पर तुल जाएगा। और ऐसा ही हुआ। अंग्रेज़ चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओं - रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खाँ, रोशन सिंह तथा राजेन्द्र सिंह लाहिड़ी को क्रमशः 19 और 17 दिसम्बर 1927 को फाँसी पर चढ़ाकर शहीद कर दिया। इस मुकदमे के दौरान दल निष्क्रिय रहा और एकाध बार बिस्मिल तथा योगेश चटर्जी आदि क्रांतिकारियों को छुड़ाने की योजना भी बनी जिसमें आज़ाद के अलावा भगत सिंह भी शामिल थे लेकिन यह योजना पूरी न हो सकी। 8-9 सितम्बर को दल का पुनर्गठन किया गया जिसका नाम हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एशोसिएसन रखा गया। इसके गठन का ढाँचा भगत सिंह ने तैयार किया था पर इसे आज़ाद का पूर्ण समर्थन प्राप्त था।चरम सक्रियता
आज़ाद के प्रशंसकों में पंडित मोतीलाल नेहरू, पुरुषोत्तमदास टंडन का नाम bhi था। जवाहरलाल नेहरू से आज़ाद की भेंट जो स्वराज भवन में हुई थी उसका ullekh नेहरू ने 'फासीवदी मनोवृत्ति' के रूप में किया है। इसकी कठोर आलोचना मन्मनाथ गुप्त ने अपने लेखन में की है। यद्यपि नेहरू ने आज़ाद को दल के सदस्यों को रूस में समाजवाद के प्रशिक्षण के लिए भेजने के लिए एक हजार रूपये दिये थे जिनमें से 448 रूपये आज़ाद की शहादत के samay उनके वस्त्रों में मिले थे। सम्भवतः सुरेन्द्रनाथ पाण्डेय तथा यशपाल का रूस जाना तय हुआ था पर 1928-31 के बीच शहादत का ऐसा kram चला कि दल लगभग बिखर सा गया। चन्द्रशेखर आज़ाद की इच्छा के विरुद्ध जब भगतसिंह एसेम्बली में बम फेंकने गए तो आज़ाद पर दल ka pura dayitva aa gaya । सांडर्स वध में भी उन्होंने भगत सिंह का साथ दिया और फिर बाद में उन्हें छुड़ाने ka pura prayas भी उन्होंने kiya । आज़ाद ke sukhav के viruddh खिलाफ जाकर यशपाल ने 23 दिसम्बर 1929 को दिल्ली के samip वायसराय की गाड़ी पर बम फेंका तो इससे आज़ाद क्षुब्ध थे क्योंकि इसमें वायसराय तो बच गया था पर कुछ और कर्मचारी मारे गए थे। आज़ाद को 28 मई 1930 को भगवतीचरण वोहरा की बमपरीक्षण में हुई शहादत से भी गहरा आघात लगा था । इसके कारण भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की योजना खटाई में पड़ गई थी। भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरू की फाँसी रुकवाने के लिए आज़ाद ने दुर्गा भाभी को गाँधीजी के पास भेजा जहाँ से उन्हें कोरा जवाब दे दिया गया था। आज़ाद ने अपने बलबूते पर झाँसी और कानपुर में अपने अड्डे बना लिये थे । झाँसी में रुद्रनारायण, सदाशिव मुल्कापुरकर, भगवानदास माहौर तथा विश्वनाथ वैशम्पायन थे जबकि कानपुर मे शालिग्राम शुक्ल सक्रिय थे। शालिग्राम शुक्ल को 1 दिसम्बर 1930 को पुलिस ने आज़ाद से एक पार्क में जाते samay शहीद कर दिया था। ve yadi jivit hote to aaj 95 varsh ke hote. unke janam divas ki sabhi desh bhakton ko badhaai.शहादत
25 फरवरी 1931 से आज़ाद इलाहाबाद में थे और यशपाल रूस भेजे जाने सम्बन्धी योजनाओं को अन्तिम रूप दे रहे थे। 27 फरवरी को जब वे अल्फ्रेड पार्क (जिसका नाम अब आज़ाद पार्क कर दिया गया है) में सुखदेव के साथ किसी चर्चा में व्यस्त थे तो किसी मुखविर की सूचना पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया। इसी मुठभेड़ में आज़ाद शहीद हुए।आज़ाद की शहादत की सूचना जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू को मिली तो उन्होंने sabhi काँग्रेसी नेताओं व अन्य देशभक्तों को इसकी सूचना दी। पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिए उनका अन्तिम संस्कार कर दिया । बाद में शाम के samay उनकी अस्थियाँ लेकर युवकों का एक जुलूस निकला और सभा हुई। सभा को शचिन्द्रनाथ सान्याल की पत्नी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जैसे बंगाल में खुदीरामबोस की शहादत के बाद उनकी राख को लोगों ने घर में रखकर सम्मानित किया वैसे ही आज़ाद को भी सम्मान मिलेगा। सभा को जवाहरलाल नेहरू ने भी सम्बोधित किया। इससे पूर्व 6 फरवरी 1927 को मोतीलाल नेहरू के देहान्त के बाद आज़ाद उनकी शवयात्रा में शामिल हुए थे क्योंकि उनके देहान्त से क्रांतिकारियों ने अपना एक सच्चा हमदर्द खो दिया था।
व्यक्तिगत जीवन
आजाद एक देशभक्त थे। अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से सामना करते samay जब उनकी पिस्तौल में antim गोली बची तो उसको उन्होंने svayam पर चला कर शहादत दी थी। उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार वे दल के लिए धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद डेरे के 5 लाख की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाए पर वहाँ जाकर उन्हें पता चला कि साधु मरणासन्न नहीं था और वे वापस आ गए। रूसी क्रान्तिकारी वेरा किग्नर की कहानियों से वे बहुत प्रभावित थे और उनके पास हिन्दी में लेनिन की लिखी एक pustak भी थी। हंलांकि वे svayam पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने मे adhik आनन्दित होते थे। जब वे आजीविका के लिए बम्बई गए थे तो उन्होंने कई फिल्में देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था पर बाद में वे फिल्मो के प्रति आकर्षित नहीं हुए।चंद्रशेखर आजाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारंभ किया गया आंदोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के 16 वर्षों के बाद 15 अगस्त सन् 1947 को भारत की आजादी का उनका सपना पूरा हुआ।
मेरे आदर्श ,मेरी प्रेरणा चन्द्रशेखर आजाद पर लेखन के लिए आभारी हूँ! पत्रकारिता के गटर को साफ करने का प्रयास करते दशक होने को है, आज आप जैसा साथी मिला प्रसन्नता हुई अभी ब्लॉग जगत में संपूर्ण सृष्टि की जानकारी को खंडबद्ध कर विषयानुसार 25 ब्लॉग बनाये हैं yugdarpan.blogspot.com तिलक संपादक युग दर्पण 09911111611, mihirbhoj.blogspot.com
तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें (बंदी भांति नियम उल्लेख पर्चे निर्णय भी )पूरा परिवेश पश्चिमकी भेंट चढ़ गया है.उसे संस्कारित,योग,आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवनको उचित शैली में ढाल सकते हैं! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
Friday, June 18, 2010
भारत व अमेरिका की दुर्घटनाएं (राष्ट्रीय चरित्र)
तिलक राज रेलन
एक (दुर)घटना 1984 में भारत के भोपाल की, दूसरी 2010 में अमेरिका की, व हमारे नेतृत्व के चरित्र का खुला चित्रण
एक (दुर)घटना 1984 में भारत के भोपाल की, दूसरी 2010 में अमेरिका की, व हमारे नेतृत्व के चरित्र का खुला चित्रण
अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने अपने देश के लिए ब्रिटिश पेट्रोलियम के क्षे.प्र. कार्ल हेनरिक स्वैन बर्ग की गर्दन दबाई!
ओबामा ने कहा था मैं उनकी गर्दन पर पैर रख कर प्रति पूर्ति निकलवाऊंगा ,उसे पूरा कर दिखाया! त्रासदी के 2 माह में करार हो गया (अधिकारों का सदुपयोग अपने लिए नहीं देश के लिए)20 अरब डालर(1000 अरब रु.) - दोष उनके अपने लोगों का भी था किन्तु उन्हें साफ बचा कर ब्रि.पै. पर पूरा दोष जड़ते हुए करार करने में सफल होने पर कोई उंगली नहीं उठी!
विश्व की सर्वाधिक भयावह औद्योगिक त्रासदी के पीड़ितों को अभी तक न्याय नहीं !
बात इतनी ही होती तो झेल जाते, उनका चरित्र देखें, धोखा अपनों को दिया और नहीं पछताते ?
कां. का इतिहास देखें एक परिवार की इच्छा के बिना पत्ता नहीं हिलता, अर्जुन सिंह यह निर्णय लेने के सक्षम नहीं, दिल्ली से आदेश आया को ठोस आधार मानने के अतिरिक्त ओर कुछ संकेत नहीं मिलता? उस शीर्ष केंद्र को बचाने के प्रयास में भले ही बलि का बकरा अर्जुन बने या सरकारी अधिकारी?
प्रतिपूर्ति की बात 14फरवरी, 1989 भारत सरकार के माध्यम 705 करोर रु. में गंभीर क़ानूनी व अपराधिक आरोप से कं. को मुक्त करने का दबाव निर्णायक परिणति में बदल गया! 15000 के जीवन का मूल्य हमारे दरिंदों ने लगाया 12000 रु. मात्र प्रति व्यक्ति 5 लाख पीड़ित व वातावरण के अन्य जीव- जंतु , अन्य हानियाँ = शुन्य? कितने संवेदन शुन्य कर्णधारों के हाथ में है यह देश?
दोषी कं अधिकारिओं को दण्डित करने के प्रश्न पर भी 1996 में विदेशी कं को गंभीरतम आरोपों से बचाने हेतु धारा 304 से 304 ए में बदलने का दोषी कौन? फिर वह भी मुख्य आरोपी को भगा कर अन्य को मात्र 2 वर्ष का कारावास,मात्र 1 लाख रु. का अर्थ दंड क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्य अपराधी कि जगह बने बलि के बकरे को पहले ही आश्वस्त किया गया हो बकरा बन जा न्यूनतम दंड अधिकतम गुप्त लाभ?
एंडरसन के जाने के बाद इतनी सफाई से उसके हितों कि रक्षा करने वाला कौन? जिसके तार ही नहीं निष्ठा भी पश्चिम से जुडी हो? स्व. राजीव गाँधी के घर ऐसा कौन था? अपने क्षुद्र स्वार्थ त्याग कर देश के उन शत्रुओं की पहचान होनी ही चाहिए।
इसे किसी भी आवरण से ढकना सबसे बड़ा राष्ट्र द्रोह होगा? अब ये प्रमाण सामने आ चुके हैं कि 3 दिसंबर,1984 को अंकित कांड की प्राथमिकी और 5 दिसंबर को न्यायलय के रिमांड आर्डर में भारी परिवर्तन किया गया। इतना सब होने के बाद भी हमारी बेशर्म राजनीति हमें न्याय दिलाने का आश्वासन दे रही है? जल्लादों के हाथ में ही न्याय की पोथी थमा दी गयी है। स्पष्ट है वे जो भी करेंगें वह जंगल का ही न्याय होगा? उस समय हम चूक गए पर अबके किसी मूल्य पर चूकना नहीं है।अपने व अगली पीडी के भविष्य के लिए? लड़ते हुए हार जाते तो इतना दुःख न था जा के दुश्मन से मिल गए ऐसे निकले?
1984 के पाप के बाद क्या अब भी नहीं सुधरेंगे? मंत्री मंडलीय समिति का गठन ऐसे समय में करना जब सब जानते हैं सांप को भगा देने पर लकड़ी पीटने का नाटक किया जा रहा है! नीचता की इस सीमा को देखते हुए कोई स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए जो निश्छल हो, जनहित में व स्वीकार्य होभोपाल गैस त्रासदी के नवीनतम प्रमाण इसके प्रति कांग्रेस व उसकी सरकारों के असंवेदनशील, निकृष्टतम, दुष्कृत्यों पर कथित योग्य व इमानदार प्र. मं. मनमोहन सिंह देश को स्पष्टीकरण दें
जिनके बिना कां. या सरकार के किसी प्रवक्ता को सुनने वाला कोई नहीं है ?
भौकने वाले पालतू हों या फालतू क्या लेना, बकवास ही सुननी है उनके मालिक ही बकें!
राजनीति की इन घृणित सच्चाइयों पर अब देश की सबसे सत्यवादी,स्वतंत्रता की जनक संविधान रचयिता INC (InterNational Crooks) पार्टी के प्रवक्ता का वक्तव्य सुनिए। वे कह रहे हैं कि अगर एंडरसन को देश से निकाला नहीं जाता तो भीड़ उन्हें मार डालती। देखिए कसाब को जेल में रखने और सुरक्षा देने में नाहक कितना खर्च आ रहा है? वाह हमारे नेता जी और आपकी राजनीति। अपराधियों को दण्डित करने पर व्यय से उत्तम है जेल के फाटक खोल दिए जाएं। इतने अपराधियों और आरोपियों पर हो रहा खर्च बच जाएगा।
इस बेशर्मी का कारण मात्र यह है कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी का नाम इस विवाद से जुड़ा है। अब कांग्रेस और उस पर अंध भक्ति रखने वाले कैसे स्वीकार करे कि गांधी परिवार के उत्तराधिकारियों से भी कभी कोई पाप हो सकता है। देवकांत बरूआ के ‘इंदिरा इज इंडिया’ के नारे व तलवा चाटू संस्कार पाकर बड़े हुए आज के कांग्रेसजन चाटुकारिता की इस प्रतियोगिता में पीछे कैसे रह सकते हैं?।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है सजा दिलाने के लिए कानूनों में परिवर्तन करना चाहिए। विगत 25 वर्ष आप इन सुविचारों के साथ किस कन्दरा में थे मान्यवर? झूठ पर खड़ी कां. व राजीव की छवि कब तक सत्य के प्रकाश से बचाओगे , व इसके लिए कितना गिरोगे ?
क्या मंत्री मंडलीय समिति सक्षम है? चर्चा कर सुनिश्चित कर सके वास्तविक दोषी वास्तव में दण्डित हों? इसके लिए पूरी प्रक्रिया परिवार निष्ठा से नहीं, पूरी सत्य निष्ठा से चले, मंत्रियों/शीर्ष नेताओं व मीडिया वालों से अनुरोध है वे, इन गंभीर प्रश्नों के उत्तर प्र.मं./ सोनिया जी से लें! उससे कम की बकवास से देश वासियों को न छलें! लीपापोती न होकर पीड़ितों को राहत मिल सके?
15000 मृतक नागरिकों,व अन्य पीड़ितों के परिजनों को न्याय मिलने से पूर्व एंडरसन मात्र 6 दिन में कैसे इस देश को छोड़ के जा सका? इतना ही नहीं 15 हजार हत्याओं का दोषी यह व्यक्ति दिल्ली में राष्ट्रपति से भेंट भी करता है।
पीड़ितों के प्रति असंवेदन शीलता, न्याय के प्रति तिरस्कार,समाज व देश के प्रति दायित्व हीनता की कांग्रेसी मानसिकता का इससे बड़ा प्रमाण कुछ और चाहिए तो देखते रहें । अभी तो खेल खुलने लगा हैं! आगे भी यही होगा न्यूनतम दंड अधिकं गुप्त लाभ पाकर बलि का बकरा सत्य को ग्रहण लगा देगा! गाँधी ने अपने आसपास पाखंडियों की भीड़ को पहचान कर ही कहा था की आज़ादी के बाद कांग्रेस भंग कर देनी चाहिए!संभवतया यही गाँधी की हत्या का कारण भी रहा हो, बकरा बना गोडसे? हम उन्ही पाखंडियों का गुण गान गाते उन्हें व उनके पालतू , कुछ फालतू बोझ को बचाते देश को लूटने/ लुटाने में व्यस्त हैं जय गाँधी बाबा की सफ़ेद खादी ढक दे सभी कुकर्मों को नकली चेहरा सामने आये असली सूरत छुपी रहे !
भोपाल गैस त्रासदी से शिक्षा के बाद भी हमारी सरकारों की (आत्मा यदि जीवित है तो) चेत जाना चाहिए था किंतु दिल्ली की सरकार जिस परमाणु अप्रसार के जुड़े विधेयक को पास कराने पर जुटी है उसमें इसी तरह कंपनियों को बचाने के षडयंत्र हैं। लगता है कि हमारी सरकारें भारत के लोगों के द्वारा भले बनाई जाती हों किंतु वे चलाई कहीं और से जाती हैं। लोकतंत्र के लिए यह कितना बड़ा व्यंग है कि हम अपने लोगों की लाशों पर विदेशियों को मौत के कारखाने खोलने के लिए लाल कालीन बिछा रहे हैं। विदेशी निवेश के लिए कुछ भी शर्त मानने को हमारी सरकारें, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सब पगलाएं हैं। क्या यह न्यायोचित है?।
जब देश और देशवासी ही सुरक्षित नहीं तो ऐसा औद्योगिक विकास लेकर हम क्या करेंगें। अपने लोगों की लाशें कंधे पर ढोते हुए ऐसा विकास क्या हम स्वीकार कर सकते है। इस घटना के बाद अब हम यह निर्णय लें कि हम सभी कंपनियों का नियमन करें,पर्यावरण से लेकर हर खतरनाक मुद्दे पर कड़े कानून बनाएं ताकि कंपनियां हमारे लोगों के स्वास्थ्य और उनके जान माल से न खेल सकें। निवेश केवल हमारी नहीं विदेशी कंपनियों की भी गरज है। किंतु वे यहां मौत के कारखाने खोलें और हमारे लोग मौत के शिकार बनते रहें यह कहां का न्याय है?। हमें सोचना होगा कि इस तरह के कामों की पुनरावृत्ति कैसे रोकी जा सकती है। यहां तक कि अपराधियों को बचाने व सजा काम कराने हेतु इस गैस त्रासदी के मूल प्रपत्रों से भी छेड़छाड़ की गयी।अब इस घृणित करम के बाद किस मुंह से लोग अपने नेताओं को पाक-साफ ठहराने की चेष्टा कर रहे हैं, कहा नहीं जा सकता?। । हमारे एक मित्र कहते हैं यह देश ऐसा क्यों है? बड़ी से मानवीय त्रासदी हमें क्यों नहीं हिलाती? हमारा स्मृतिदोष इतना विलक्षण क्यों है? हम क्यों भूलते और क्यों क्षमा कर देते हैं? राजनीति यदि ऐसी है तो इसके लिए क्या हम भारत के लोग दोषी नहीं है? क्या कारण है कि हमारे शिखर पुरूषों की चिंता का विषय आम भारतीय नहीं गोरी चमड़ी का वह आदमी है जिसे देश से निकालने के लिए वे सारे प्रबंध निपुणता से करते हैं। हमारे लोगों को सही प्रतिपूर्ति मिले, उनके घावों पर औषध का लेप लगे इसके बदले हम लीपा पोती करते दिखते हैं जिसने लिए हम बिक जाते हैं। पैसे की यह प्रकट पिपासा हमारी राजनीति, समाज जीवन, प्रशासनिक तंत्र सब जगह छा रही है।
आम आदमी की पार्टी के नाम पर सत्ता पाने वालों के लिए आम भारतीय जान इतनी सस्ती है कि पूरा विश्व इस सत्य को जानने के बाद हम पर हंस रहा है। इस प्रसंग में संवैधानिक पद पर बैठा हर व्यक्ति अपनी दायित्व से भागता हुआ दिखा है। दिल्ली से लेकर भोपाल तक, रायसीना की पहाड़ियों से लेकर श्यामला हिल्स तक ये पाप-कथाएं पसरी पड़ी हैं। निचली अदालत के फैसले ने हमें झकझोर कर जगाया है किंतु कब तक। क्या न्याय मिलने तक। या हमेशा की तरह किसी नए विवादित मुद्दे के खुलने तक…
भोपाल में निचली अदालत के निर्णय से और कुछ हो या न हो, हमारे तंत्र का नकली चेहरा स्पष्ट कर दिया है। देश के तंत्र के चारों स्तम्भ व उनपर खड़ी लोकतंत्र की छत आम आदमी के नहीं अपराधियों व केवल अपराधियों के संरक्षण के लिए बने हैं! स्थिति यह है कि कुछ लोग अभी भी जन हित सर्वोपरि मानते हैं जिन के अभियानों के दबाव प्रतिपूर्ति का निर्णय मिल सका, मिला। देश की सरकारों की ओर से न्यायपूर्ण प्रयास नहीं देखे गए। बिकाऊ मीडिया के बीच सत्य निष्ठ मीडिया के अवशेष अभी भी शेष हैं? आज भी भोपाल को लेकर मचा शोर इसलिए प्रखरता से दिख रहा है क्योंकि मीडिया ने इसमें रूचि ली और राजनैतिक दलों को बगलें झांकने को बाध्य कर दिया।
एक ओर घोर बाजारवादी समाज के बीच उनके नेता ओबामा का राष्ट्रीय चरित्र दूसरी ओर आदर्शवादी समाज का आधुनिक नेतृत्व? विकसित होने की चाह ने विकास की नई राह ने कहाँ से कहाँ हमें गिराया है? धन व लोभ की भूख ने संवेदना व मानवता को मिटाया है! कुछ लोगों को मिली उपाधियों व व्यक्तिगत उपलब्धियों व बिकाऊ मीडिया ने हमें भरमाया है? सत्य जो अब भी समझ आया है, युगदर्पण ने अलख यही जगाया है। तिलक
हमें लीपापोती व बाजारवादी सोच को त्यागना होगा, निश्चित ही जो झाड़ पे चडेगा, वो गिरेगा व मरेगा ! समाज तो समाज केन्द्रित सोच से ही सुदृद होगा-चिंतन।
अन्यत्र हिन्दू समाज व हिदुत्व और भारत को प्रभावित करने वाली जानकारी का दर्पण है विश्वदर्पण। आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक
Monday, May 17, 2010
Wednesday, May 5, 2010
असफल हुआ, हिन्दू धर्माचार्य को बदनाम करने का कुचक्र
-मयंक चतुर्वेदी
चित्रकूट तुलसी पीठ के पीठाधीश्वर एवं विकलांग विश्वविद्यालय के कुलाधिपति जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य को हिन्दू विरोधी शक्तियों द्वारा विवादित और बदनाम करने की साजिश का आखिरकार खुलासा हो गया। उनके बारे में यह भ्रम फैलाया जा रहा था कि वह संत तुलसीदास की कृति रामचरित मानस को अशुद्धियों से भरा मानते हैं और उसमें उन्होंने ३०० से अधिक गलतियां ढूढ निकाली हैं। समाचार पत्रों में यह विवादास्पद समाचार प्रकाशित होने के बाद से हिन्दू समाज में लगातार उनके विरुध्द जन आक्रोश भडक रहा था, जिसका कि आखिरकार पटाक्षेप अखिल भारतीय अखाडा परिषद अयोध्या के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास के सार्वजनिक वक्तव्य आने के बाद हो गया।
गौरतलब है कि यह 24 अप्रैल को एक समाचार एजेंसी द्वारा यह समाचार प्रमुखता से प्रसारित किया गया था कि जगतगुरू रामभद्राचार्य पर अखिल भारतीय अखाडा परिषद ने तुलसीदास कृत रामचरित मानस में गलतियां ढूढने के बाद उन पर 7 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है, वहीं रामभद्राचार्य ने स्वयं को संशोधित रामचरितमानस की सभी प्रतियों को महंत ज्ञानदास के निर्वाणी अखाडे को सौंप दिया है। आचार्य ने अपनी गलती मानते हुए सजा स्वीकार्य करने के साथ जुर्माना अदा कर दिया है। इसके अलावा रामभद्राचार्य ने खुद यह बात स्वीकार्य की है कि उनसे भारी भूल हो गई। उन्हें रामचरित मानस में गलतियां नहीं निकालनी थी। ज्ञातव्य हो कि इस खबर के आने के बाद से पिछले तीन दिनों से घटनाक्रम तेजी से बदला और संत तुलसीदास के प्रति आदरभाव रखने वाले रामभद्राचार्य के विरुध्दा मुहिम चलाने लगे थे। आखिरकार स्थिति को भांपते हुए अखिल भारतीय अखाडा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास सामने आ गए हैं। ”हिन्दुस्थान समाचार” से दूरभाष पर बातचीत के दौरान उन्होंने रामभद्राचार्य की संशोधित रामचरित मानस की गलतियों से संबंधित सभी बातों को सिरे से खारिज कर दिया। उनका कहना था कि जगद्गुरू रामभद्राचार्य के प्रति उनके अंदर सम्मानजनक भाव है। कहीं कोई विवाद नहीं। समाचार एजेंसी से जो समाचार प्रेषित हुआ तथा बाद में वह कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ वह मिथ्या है। उसमें कोई सच्चाई नहीं। उन्होंने स्वामी रामभद्राचार्य को सर्वसम्मति से लिए गए अखाडा परिषद के निर्णय में निर्विवाद ठहराया है।महंत ज्ञानदास का कहना है कि स्वामी रामभद्राचार्य से रामचरित मानस को लेकर अखिल भारतीय अखाडा परिषद का कोई विवाद नहीं है। उन पर परिषद ने किसी प्रकार का जुर्माना नहीं लगाया। यह किसी षडयंत्रकारी की खुरापात है तथा हिन्दू धर्माचार्यों को बदनाम करने की साजिश है। स्वामी रामभद्राचार्य हमारे निर्विवाद जगदगुरू हैं, थे और रहेंगे। महंत ज्ञानदास ने यह भी बताया कि अखिल भारतीय अखाडा परिषद ने हरिद्वार महाकुंभ के दौरान चार जगद्गुरु घोषित किए हैं, जिनमें चित्रकूट, तुलसी पीठ पर स्वामी रामभद्राचार्य-पूर्व, स्वामी रामाचार्य-पश्चिम, हंस देवाचार्य-उत्तर तथा नरेंद्रचार्य को दक्षिण पीठ का सर्वसम्मति से पीठाधीश्वर बनाया गया है।
इस सम्बन्ध में तुलसीपीठाधीश्वर रामभद्राचार्य ने उत्पन्न विवाद पर खेद जताया है। उनका कहना है कि वे निर्विवाद जगदगुरू हैं, जगदगुरू पर कोई जुर्माना नहीं लगाया जा सकता। जो मेरी प्रतिभा को सहन नहीं कर पा रहे हैं वे लोग इस प्रकार का षड्यंत्र रच हिन्दू संतों को अपमानित करने का कार्य कर रहे हैं। मैंने मूल रामचरित मानस का एक भी अक्षर संशोधित नहीं किया, सिर्फ संपादन किया है। उन्होंने कहा कि सम्यक प्रस्तुति को संपादन कहते हैं और इसे स्वयं तुलसीदास ने रामचरित मानस के उत्तर काण्ड दोहा 130 में व्यक्त किया है। अभी तक रामचरित मानस के अनेक संपादक हो चुके हैं, किसी पर ऐसी आपत्ति नहीं की गई, जिस तरह मेरे संपादन किए जाने पर उभर कर सामने आईं हैं। उनका रामचरितमानस पर कोई विवाद नहीं। स्वामी भद्राचार्य का कहना है कि अखाडा परिषद् के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास उनके परम मित्र हैं, वे अनेक बार इस बात का खंडन कर चुके हैं कि मुझे लेकर कहीं भी कोई विवाद शेष नहीं है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, त्राण से मुक्ति के शस्त्र के रूप में समाज के काम आये या न आये; किन्तु प्रकाश के लिए जलाये दीपक से घर को जलाने को प्रशिक्षित एवम प्रतीक्षित राष्ट्र के शत्रु (वामपंथी) इनका उपयोग भली भांति जानते भी हैं व कर भी रहे हैं! इसका उपयोग समाज हित में हो व राष्ट्र के शत्रुओं पर अंकुश भी लगे हमें यह दोहरा दायित्व निभाना है! कभी विश्व गुरु रहे भारत की धर्म संस्कृति की पताका,विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये!... जय भारत --तिलक
पूरा परिवेश पश्चिमकी भेंट चढ़ गया है.उसे संस्कारित,योग,आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवनको उचित शैली में ढाल सकते हैं! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
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