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Monday, January 20, 2020

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👑आज अपने जन्म दिवस के अवसर पर, देश को समर्पित हैं, दो यू-टयूब राष्ट्रीय चैनल 
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कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका; विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक

यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है | उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक

Saturday, July 16, 2016



अंतरर्राज्य परिषद् की 11वीं बैठक को प्रमं का उद्घाटन सम्बोधन 
खुफिया सूचना साझा करने पर फोकस करें राज्यः मोदीनदि तिलक। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुमं व उप-राज्यपाल और कबीना सहयोगियों, से अंतर्राज्यीय परि की इस मुख्य बैठक के उद्घाटन सम्बोधन में स्वागत करते हुए प्र मं मोदी ने उनसे कहा- ऐसे अवसर कम ही आते हैं जब केंद्र और राज्यों का नेतृत्व एक साथ एक स्थान पर उपस्थित हो। मोदी ने इसे आम जनता के हितों पर बात करने के लिए, उनकी समस्याओं के निपटारे के लिए, एक साथ मिलकर ठोस निर्णय लेने के लिए सहकारी संघवाद का यह मंच, श्रेष्ठ उदाहरण तथा संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि को दर्शाने वाला भी बताया है। 
मोदी ने 3 डी पर बल देते कहा प्राय: 16 वर्ष पूर्व इसी मंच से कही गई पूर्व प्रधानमंत्री और हमारे श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की बात से शुरु करूंगा, वाजपेयी जी ने कहा था कि- 
“भारत जैसे बड़े और विविधता से भरे हुए लोकतंत्र में Debate यानि वाद-विवाद, Deliberation यानि विवेचना और Discussion यानि विचार-विमर्श से ही ऐसी नीतियां बन सकती हैं जो जमीनी सच्चाई का ध्यान रखती हों। ये तीनों बातें, नीतियों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने में भी मदद करती हैं। इंटर स्टेट काउंसिल एक ऐसा मंच है जिसका इस्तेमाल नीतियों को बनाने और उन्हें लागू करने में किया जा सकता है। इसलिए लोकतंत्र, समाज और हमारी राज्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, इस मंच का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए”। 
मोदी ने इसे केंद्र -राज्य और अंतर्राज्यीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का सबसे बड़ा मंच बताया। जबकि 2006 के बाद लंबे अंतराल तक ये बैठक नहीं हो पाई, किन्तु गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का प्रयास पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते कहा कि गत एक वर्ष में वे देश भर की पाँच आंचलिक परिषदों की बैठक बुला चुके हैं। मोदी ने कहा कि इस मध्य संवाद और संपर्क का क्रम बढ़ने का ही परिणाम है कि आज हम सभी यहां एकत्र हुए हैं। 
मोदी ने कहा देश का विकास तभी संभव है जब केंद्र और राज्य सरकारें कंधे से कंधा मिलाकर चलें। किसी भी सरकार के लिए कठिन होगा कि वो मात्र अपने दम पर कोई योजना को सफल कर सके। इसलिए दायित्वों के साथ ही वित्तीय संसाधनों की भी अपनी महत्ता है। 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की स्वीकृति के साथ केंद्रीय करों में राज्यों की भागीदारी 32 % से बढ़ाकर 42 % कर दी गई है। अर्थात अब राज्यों के पास अधिक राशि आ रही है जिसका उपयोग वो अपनी आवश्यकतानुसार कर रहे हैं।राज्यों को केंद्र से वर्ष 2014-15 की तुलना में गत वर्ष 2015-16 के 21 % अधिक राशि मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त करते कहा इसी प्रकार पंचायतों और स्थानीय निकायों को 14वें वित्त आयोग की अवधि में 2 लाख 87 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी जो विगत से काफी अधिक है। 
प्राकृतिक संसाधनों से होने वाली आय में भी राज्यों के अधिकारों का ध्यान रखा जा रहा है। कोयला खदानों की नीलामी से राज्यों को आने वाले वर्षों में 3 लाख 35 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। कोयले के अतिरिक्त भी दूसरे खनन से राज्यों को 18 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। इसी प्रकार एक कानून में परिवर्तन द्वारा बैंक में रखे हुए प्राय: 40 हजार करोड़ रुपए को भी राज्यों को देने का प्रयास किया जा रहा है। 
व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ने के कारण जो राशी बच रही है, उसे भी केंद्र सरकार आपके साथ साझा करना चाहती है। एक उदाहरण केरोसिन का ही है। गावों में बिजली कनेक्शन बढ़ रहे हैं। आने वाले तीन वर्ष में सरकार 5 करोड़ नए गैस कनेक्शन देने जा रही है। रसोई गैस की आपूर्ति भी और बढ़ेगी। इन प्रयासों का सीधा प्रभाव केरोसिन की खपत पर पड़ा है। अभी चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने शहर को केरोसिन मुक्त क्षेत्र घोषित किया है। अब केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसके तहत केरोसिन की खपत में कमी करने पर, केंद्र छूट के रूप में जो पैसा खर्च करता था, उसका 75 % राज्यों को अनुदान के रूप में देगा। कर्नाटक सरकार ने इस पहल पर तेजी दिखाते हुए अपना प्रस्ताव पेट्रोलियम मंत्रालय को भेज दिया था, जिसे स्वीकार करने के बाद राज्य सरकार को अनुदान का भुगतान कर दिया गया है। यदि सभी राज्य केरोसिन की खपत को 25 % कम करने का निर्णय लेते हैं और इस पर व्यवहार करके दिखाते हैं, तो इस वर्ष उन्हें प्राय: 1600 करोड़ रुपए के अनुदान का लाभ मिल सकता है। 
उनके सम्बोधन में प्राय: ये बातें भी कही गईं -
केंद्र -राज्य सम्बन्धों के साथ ही अं परि उन विषयों पर भी चर्चा का मंच है जो देश की बड़ी संख्या से जुड़े हुए हैं। कैसे नीति-निर्धारण के स्तर पर इन मुद्दों को सुलझाने के लिए एक राय बनाई जा सकती है, कैसे एक दूसरे से परस्पर जुड़े विषयों को सुलझाया जा सकता है। 
इसलिए इस बार अं परि में पुंछी आयोग की रपट के साथ ही तीन और मुख्य विषयों को कार्यावली में रखा गया है।
पहला है- ‘आधार’ । संसद से ‘आधार’ एक्ट 2016 पास हो चुका है। इस कानून के पास होने के बाद अब हमें चाहे छूट हो या फिर सभी दूसरी सुविधाएं, ‘कहते में नगत स्थांतरण’ के लिए आधार के प्रयोग की सुविधा मिल गई है। 128 करोड़ की संख्या वाले हमारे देश में अब तक 102 करोड़ लोगों को आधार कार्ड बांटे जा चुके हैं। यानि अब देश की 79 % जनसंख्या के पास आधार कार्ड है। यदि वयस्कों की बात करें तो देश के 96 % नागरिकों के पास आधार कार्ड है। आप सभी के समर्थन से इस वर्ष के अंत तक हम देश के हर नागरिक को आधार कार्ड से जोड़ लेंगे। 
आज के समय में साधारण सा आधार कार्ड, लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है। सरकारी छूट या सहायता पर जिस व्यक्ति का अधिकार है, अब उसे ही इसका लाभ मिल रहा है, पैसा सीधे उसी के खाते में जा रहा है। इससे पारदर्शिता तो आई ही है, हजारों करोड़ रुपए की बचत हो रही है जिसे विकास के काम पर व्यय किया जा रहा है। 
मित्रों, बाबा साहेब अम्बेडकर ने लिखा था कि- “भारत जैसे देश में सामाजिक सुधार का मार्ग उतना ही कठिन है, उतनी ही अड़चनों से भरा हुआ है जितना स्वर्ग जाने का मार्ग। जब आप सामाजिक सुधार की सोचते हैं तो आपको मित्र कम, आलोचक अधिक मिलते हैं” । 
आज भी उनकी लिखी बातें, उतनी ही प्रासंगिक है। इसलिए आलोचनाओं से बचते हुए, हमें एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए, सामाजिक सुधार की योजनाओं को आगे बढ़ाने पर बल देना होगा। इनमें से बहुत सी योजनाओं की रूप-रेखा, नीति आयोग में मुख्यमंत्रियों के ही उप-समूह ने तैयार की है। 
अं परि में जिस एक और मुख्य विषय पर चर्चा होनी है, वह है शिक्षा । भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारे युवा ही हैं। 30 करोड़ से अधिक बच्चे अभी स्कूल जाने वाली आयु में हैं। इसलिए हमारे देश में आने वाले कई वर्षों तक विश्व को कुशल जनशक्ति देने की क्षमता है। केंद्र और राज्यों को मिलकर बच्चों को शिक्षा का ऐसा वातावरण देना होगा जिसमें वे आज की आवश्यकतानुसार स्वयं को तैयार कर सकें, अपने कौशल का विकास कर सकें। 
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के शब्दों में कहें तो- शिक्षा एक निवेश है। हम पेड़-पौधों को लगाते समय उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। हमें पता होता है कि यही पेड़-पौधे आगे जाकर हमें प्राण वायु देंगे, पर्यावरण में सहयोग करेंगे। उसी प्रकार शिक्षा भी एक निवेश है जिसका लाभ समाज को होता है। 
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने ये बातें 1965 में कहीं थीं। तब से लेकर आज तक हम शिक्षा की दृष्टि से बहुत लंबी यात्रा पूरी कर चुके हैं। किन्तु अब भी शिक्षा के स्तर को लेकर बहुत कुछ किया जाना शेष है। हमारी शिक्षा व्यवस्था से बच्चे वास्तव में कितना शिक्षित हो रहे हैं, इसे भी हमें अपनी चर्चा में लाना होगा। 
इसलिए बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधारने का सबसे बड़ा ढंग है कि उन्हें शिक्षा का उद्देश्य भी समझाया जाए। मात्र स्कूल जाना ही पढ़ाई नहीं है। पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए, जो बच्चों को प्रश्न पूछना सिखाए, उन्हें ज्ञान अर्जित करना और ज्ञान बढ़ाना सिखाए, जो जीवन के हर मोड़ पर उन्हें कुछ ना कुछ सीखते रहने के लिए प्रेरित करे। 
स्वामी विवेकानंद भी कहते थे कि शिक्षा का अर्थ मात्र पुस्तकी ज्ञान पाना नहीं है। शिक्षा का लक्ष्य है चरित्र का निर्माण, शिक्षा का अर्थ है मस्तिष्क को सुदृढ़ करना, अपनी बौद्धिक शक्ति को बढ़ाना, जिससे स्वयं के पैरों पर खड़ा हुआ जा सके।
21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में, जिस तरह की कुशलता और योग्यता की आवश्यकता है, उसमें हम सभी का दायित्व है कि युवाओं के पास कोई न कोई कौशल अवश्य हो। हमें युवाओं को ऐसा बनाना होगा कि वे अलग सोच व तर्क के साथ सोचें और अपने काम में रचनात्मक दिखें। 
आज की कार्यावली में जिस एक और महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा होनी है, वह है आंतरिक सुरक्षा। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए किस प्रकार की चुनौतियां हैं, इन चुनौतियों से कैसे निपट सकते हैं, कैसे एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, इस पर चर्चा होनी है। देश की आंतरिक सुरक्षा को तब तक सुदृढ़ नहीं किया जा सकता, जब तक प्रज्ञता साँझाकरण पर केंद्रित ना हो, एजेंसियों में अधिक तालमेल ना हो, हमारी पुलिस आधुनिक सोच और तकनीक से लैस ना हो। हमने इस मोर्चे पर बड़ा लंबा मार्ग तय किया है किन्तु हमें लगातार अपनी कार्य-कुशलता और क्षमता को बढ़ाते चलना है। हमें हर समय सतर्क और अद्यतन रहना है। 
अं परि की बैठक बहुत ही खुले हुए वातावरण में, बहुत ही स्पष्ट होकर एक दूसरे के विचार सुनने और साझा करने का अवसर देती है। मुझे आशा है कि आप कार्यावली के सभी विषयों पर खुलकर अपनी राय देंगे, अपने सुझाव देंगे। आपके सुझाव बहुत मूल्यवान होंगे। 
जितना ही हम इन मुख्य विषयों पर एक राय बनाने में सफल होंगे, उतना ही कठिनाइयों को पार करना सरल होगा। इस प्रक्रिया में हम न केवल सहकारी संघवाद की भावना और केंद्र-राज्य सम्बन्धों को सुदृढ़ करेंगे बल्कि देश के नागरिकों के श्रेष्ठ भविष्य को भी सुनिश्चित करेंगे। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राज्यों से गुप्तचरी सूचना साझा करने को कहा जिससे देश को आंतरिक सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से लड़ने में ‘‘चौकन्ना’’ तथा ‘‘अद्यतन’’ रहने में सहायता मिलेगी।
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है |
 आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है | उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक 
https://www.youtube.com/watch?v=kBzVDhcnrvA&index=57&list=PLaypC1Q7dot2BbeOFAWZW-beQPcYr1G8W

अंतरर्राज्य परिषद् की 11वीं बैठक को प्रमं का उद्घाटन सम्बोधन

अंतरर्राज्य परिषद् की 11वीं बैठक को प्रमं का उद्घाटन सम्बोधन 
खुफिया सूचना साझा करने पर फोकस करें राज्यः मोदीनदि तिलक। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुमं व उप-राज्यपाल और कबीना सहयोगियों, से अंतर्राज्यीय परि की इस मुख्य बैठक के उद्घाटन सम्बोधन में स्वागत करते हुए प्र मं मोदी ने उनसे कहा- ऐसे अवसर कम ही आते हैं जब केंद्र और राज्यों का नेतृत्व एक साथ एक स्थान पर उपस्थित हो। मोदी ने इसे आम जनता के हितों पर बात करने के लिए, उनकी समस्याओं के निपटारे के लिए, एक साथ मिलकर ठोस निर्णय लेने के लिए सहकारी संघवाद का यह मंच, श्रेष्ठ उदाहरण तथा संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि को दर्शाने वाला भी बताया है। 
मोदी ने 3 डी पर बल देते कहा प्राय: 16 वर्ष पूर्व इसी मंच से कही गई पूर्व प्रधानमंत्री और हमारे श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की बात से शुरु करूंगा, वाजपेयी जी ने कहा था कि- 
“भारत जैसे बड़े और विविधता से भरे हुए लोकतंत्र में Debate यानि वाद-विवाद, Deliberation यानि विवेचना और Discussion यानि विचार-विमर्श से ही ऐसी नीतियां बन सकती हैं जो जमीनी सच्चाई का ध्यान रखती हों। ये तीनों बातें, नीतियों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने में भी मदद करती हैं। इंटर स्टेट काउंसिल एक ऐसा मंच है जिसका इस्तेमाल नीतियों को बनाने और उन्हें लागू करने में किया जा सकता है। इसलिए लोकतंत्र, समाज और हमारी राज्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, इस मंच का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए”। 
मोदी ने इसे केंद्र -राज्य और अंतर्राज्यीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का सबसे बड़ा मंच बताया। जबकि 2006 के बाद लंबे अंतराल तक ये बैठक नहीं हो पाई, किन्तु गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का प्रयास पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते कहा कि गत एक वर्ष में वे देश भर की पाँच आंचलिक परिषदों की बैठक बुला चुके हैं। मोदी ने कहा कि इस मध्य संवाद और संपर्क का क्रम बढ़ने का ही परिणाम है कि आज हम सभी यहां एकत्र हुए हैं। 
मोदी ने कहा देश का विकास तभी संभव है जब केंद्र और राज्य सरकारें कंधे से कंधा मिलाकर चलें। किसी भी सरकार के लिए कठिन होगा कि वो मात्र अपने दम पर कोई योजना को सफल कर सके। इसलिए दायित्वों के साथ ही वित्तीय संसाधनों की भी अपनी महत्ता है। 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की स्वीकृति के साथ केंद्रीय करों में राज्यों की भागीदारी 32 % से बढ़ाकर 42 % कर दी गई है। अर्थात अब राज्यों के पास अधिक राशि आ रही है जिसका उपयोग वो अपनी आवश्यकतानुसार कर रहे हैं। राज्यों को केंद्र से वर्ष 2014-15 की तुलना में गत वर्ष 2015-16 के 21 % अधिक राशि मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त करते कहा इसी प्रकार पंचायतों और स्थानीय निकायों को 14वें वित्त आयोग की अवधि में 2 लाख 87 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी जो विगत से काफी अधिक है। 
प्राकृतिक संसाधनों से होने वाली आय में भी राज्यों के अधिकारों का ध्यान रखा जा रहा है। कोयला खदानों की नीलामी से राज्यों को आने वाले वर्षों में 3 लाख 35 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। कोयले के अतिरिक्त भी दूसरे खनन से राज्यों को 18 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। इसी प्रकार एक कानून में परिवर्तन द्वारा बैंक में रखे हुए प्राय: 40 हजार करोड़ रुपए को भी राज्यों को देने का प्रयास किया जा रहा है। 
व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ने के कारण जो राशी बच रही है, उसे भी केंद्र सरकार आपके साथ साझा करना चाहती है। एक उदाहरण केरोसिन का ही है। गावों में बिजली कनेक्शन बढ़ रहे हैं। आने वाले तीन वर्ष में सरकार 5 करोड़ नए गैस कनेक्शन देने जा रही है। रसोई गैस की आपूर्ति भी और बढ़ेगी। इन प्रयासों का सीधा प्रभाव केरोसिन की खपत पर पड़ा है। अभी चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने शहर को केरोसिन मुक्त क्षेत्र घोषित किया है। अब केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसके तहत केरोसिन की खपत में कमी करने पर, केंद्र छूट के रूप में जो पैसा खर्च करता था, उसका 75 % राज्यों को अनुदान के रूप में देगा। कर्नाटक सरकार ने इस पहल पर तेजी दिखाते हुए अपना प्रस्ताव पेट्रोलियम मंत्रालय को भेज दिया था, जिसे स्वीकार करने के बाद राज्य सरकार को अनुदान का भुगतान कर दिया गया है। यदि सभी राज्य केरोसिन की खपत को 25 % कम करने का निर्णय लेते हैं और इस पर व्यवहार करके दिखाते हैं, तो इस वर्ष उन्हें प्राय: 1600 करोड़ रुपए के अनुदान का लाभ मिल सकता है। 
उनके सम्बोधन में प्राय: ये बातें भी कही गईं -
केंद्र -राज्य सम्बन्धों के साथ ही अं परि उन विषयों पर भी चर्चा का मंच है जो देश की बड़ी संख्या से जुड़े हुए हैं। कैसे नीति-निर्धारण के स्तर पर इन मुद्दों को सुलझाने के लिए एक राय बनाई जा सकती है, कैसे एक दूसरे से परस्पर जुड़े विषयों को सुलझाया जा सकता है। 
इसलिए इस बार अं परि में पुंछी आयोग की रपट के साथ ही तीन और मुख्य विषयों को कार्यावली में रखा गया है।
पहला है- ‘आधार’ । संसद से ‘आधार’ एक्ट 2016 पास हो चुका है। इस कानून के पास होने के बाद अब हमें चाहे छूट हो या फिर सभी दूसरी सुविधाएं, ‘कहते में नगत स्थांतरण’ के लिए आधार के प्रयोग की सुविधा मिल गई है। 128 करोड़ की संख्या वाले हमारे देश में अब तक 102 करोड़ लोगों को आधार कार्ड बांटे जा चुके हैं। यानि अब देश की 79 % जनसंख्या के पास आधार कार्ड है। यदि वयस्कों की बात करें तो देश के 96 % नागरिकों के पास आधार कार्ड है। आप सभी के समर्थन से इस वर्ष के अंत तक हम देश के हर नागरिक को आधार कार्ड से जोड़ लेंगे। 
आज के समय में साधारण सा आधार कार्ड, लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है। सरकारी छूट या सहायता पर जिस व्यक्ति का अधिकार है, अब उसे ही इसका लाभ मिल रहा है, पैसा सीधे उसी के खाते में जा रहा है। इससे पारदर्शिता तो आई ही है, हजारों करोड़ रुपए की बचत हो रही है जिसे विकास के काम पर व्यय किया जा रहा है। 
मित्रों, बाबा साहेब अम्बेडकर ने लिखा था कि- “भारत जैसे देश में सामाजिक सुधार का मार्ग उतना ही कठिन है, उतनी ही अड़चनों से भरा हुआ है जितना स्वर्ग जाने का मार्ग। जब आप सामाजिक सुधार की सोचते हैं तो आपको मित्र कम, आलोचक अधिक मिलते हैं” । 
आज भी उनकी लिखी बातें, उतनी ही प्रासंगिक है। इसलिए आलोचनाओं से बचते हुए, हमें एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए, सामाजिक सुधार की योजनाओं को आगे बढ़ाने पर बल देना होगा। इनमें से बहुत सी योजनाओं की रूप-रेखा, नीति आयोग में मुख्यमंत्रियों के ही उप-समूह ने तैयार की है। 
अं परि में जिस एक और मुख्य विषय पर चर्चा होनी है, वह है शिक्षा । भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारे युवा ही हैं। 30 करोड़ से अधिक बच्चे अभी स्कूल जाने वाली आयु में हैं। इसलिए हमारे देश में आने वाले कई वर्षों तक विश्व को कुशल जनशक्ति देने की क्षमता है। केंद्र और राज्यों को मिलकर बच्चों को शिक्षा का ऐसा वातावरण देना होगा जिसमें वे आज की आवश्यकतानुसार स्वयं को तैयार कर सकें, अपने कौशल का विकास कर सकें। 
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के शब्दों में कहें तो- शिक्षा एक निवेश है। हम पेड़-पौधों को लगाते समय उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। हमें पता होता है कि यही पेड़-पौधे आगे जाकर हमें प्राण वायु देंगे, पर्यावरण में सहयोग करेंगे। उसी प्रकार शिक्षा भी एक निवेश है जिसका लाभ समाज को होता है। 
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने ये बातें 1965 में कहीं थीं। तब से लेकर आज तक हम शिक्षा की दृष्टि से बहुत लंबी यात्रा पूरी कर चुके हैं। किन्तु अब भी शिक्षा के स्तर को लेकर बहुत कुछ किया जाना शेष है। हमारी शिक्षा व्यवस्था से बच्चे वास्तव में कितना शिक्षित हो रहे हैं, इसे भी हमें अपनी चर्चा में लाना होगा। 
इसलिए बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधारने का सबसे बड़ा ढंग है कि उन्हें शिक्षा का उद्देश्य भी समझाया जाए। मात्र स्कूल जाना ही पढ़ाई नहीं है। पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए, जो बच्चों को प्रश्न पूछना सिखाए, उन्हें ज्ञान अर्जित करना और ज्ञान बढ़ाना सिखाए, जो जीवन के हर मोड़ पर उन्हें कुछ ना कुछ सीखते रहने के लिए प्रेरित करे। 
स्वामी विवेकानंद भी कहते थे कि शिक्षा का अर्थ मात्र पुस्तकी ज्ञान पाना नहीं है। शिक्षा का लक्ष्य है चरित्र का निर्माण, शिक्षा का अर्थ है मस्तिष्क को सुदृढ़ करना, अपनी बौद्धिक शक्ति को बढ़ाना, जिससे स्वयं के पैरों पर खड़ा हुआ जा सके।
21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में, जिस तरह की कुशलता और योग्यता की आवश्यकता है, उसमें हम सभी का दायित्व है कि युवाओं के पास कोई न कोई कौशल अवश्य हो। हमें युवाओं को ऐसा बनाना होगा कि वे अलग सोच व तर्क के साथ सोचें और अपने काम में रचनात्मक दिखें। 
आज की कार्यावली में जिस एक और महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा होनी है, वह है आंतरिक सुरक्षा। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए किस प्रकार की चुनौतियां हैं, इन चुनौतियों से कैसे निपट सकते हैं, कैसे एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, इस पर चर्चा होनी है। देश की आंतरिक सुरक्षा को तब तक सुदृढ़ नहीं किया जा सकता, जब तक प्रज्ञता साँझाकरण पर केंद्रित ना हो, एजेंसियों में अधिक तालमेल ना हो, हमारी पुलिस आधुनिक सोच और तकनीक से लैस ना हो। हमने इस मोर्चे पर बड़ा लंबा मार्ग तय किया है किन्तु हमें लगातार अपनी कार्य-कुशलता और क्षमता को बढ़ाते चलना है। हमें हर समय सतर्क और अद्यतन रहना है। 
अं परि की बैठक बहुत ही खुले हुए वातावरण में, बहुत ही स्पष्ट होकर एक दूसरे के विचार सुनने और साझा करने का अवसर देती है। मुझे आशा है कि आप कार्यावली के सभी विषयों पर खुलकर अपनी राय देंगे, अपने सुझाव देंगे। आपके सुझाव बहुत मूल्यवान होंगे। 
जितना ही हम इन मुख्य विषयों पर एक राय बनाने में सफल होंगे, उतना ही कठिनाइयों को पार करना सरल होगा। इस प्रक्रिया में हम न केवल सहकारी संघवाद की भावना और केंद्र-राज्य सम्बन्धों को सुदृढ़ करेंगे बल्कि देश के नागरिकों के श्रेष्ठ भविष्य को भी सुनिश्चित करेंगे। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राज्यों से गुप्तचरी सूचना साझा करने को कहा जिससे देश को आंतरिक सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से लड़ने में ‘‘चौकन्ना’’ तथा ‘‘अद्यतन’’ रहने में सहायता मिलेगी।
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है |
 आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है | उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का अनुसरण कर
हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
http://raashtradarpan.blogspot.in/2016/07/11.html 

Monday, July 11, 2016

भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी !

भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी ! 
dagree1 
नदि तिलक। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई ने अपने दीक्षांत समारोह की पोशाक के लिए खादी का चयन किया है। गुजरात विश्वविद्यालय के बाद अब खादी ने प्रमुख भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई के अधिकारियों के दिल में स्थान बनाया है। खादी अपनाने के बारे में आग्रह और लोकप्रियता से आकर्षित होकर संस्थान ने दीक्षांत समारोह के समय छात्रों द्वारा पहने जाने के लिए 3,500 खादी के अंगवस्त्रम बनाने को कहा गया है। यह एक महत्वपूर्ण पग है और यह दर्शाता है कि खादी का स्थान जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ रहा है। भाप्रौसं मुंबई के निदेशक प्रोफेसर देवांग खाखर ने कहा कि खादी हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है और छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना भरने के लिए हमने खादी को अपनाया है। 
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए।
आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
http://shikshaadarpan.blogspot.in/2016/07/blog-post_11.html
पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है | उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक

भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी !

भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी ! 
dagree1 
नदि तिलक। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई ने अपने दीक्षांत समारोह की पोशाक के लिए खादी का चयन किया है। गुजरात विश्वविद्यालय के बाद अब खादी ने प्रमुख भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई के अधिकारियों के दिल में स्थान बनाया है। खादी अपनाने के बारे में आग्रह और लोकप्रियता से आकर्षित होकर संस्थान ने दीक्षांत समारोह के समय छात्रों द्वारा पहने जाने के लिए 3,500 खादी के अंगवस्त्रम बनाने को कहा गया है। यह एक महत्वपूर्ण पग है और यह दर्शाता है कि खादी का स्थान जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ रहा है। भाप्रौसं मुंबई के निदेशक प्रोफेसर देवांग खाखर ने कहा कि खादी हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है और छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना भरने के लिए हमने खादी को अपनाया है। 
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए।
आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
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Monday, July 4, 2016

बलि चढ़ाना, बलिदान नहीं :इरफान

बलि चढ़ाना, बलिदान नहीं :इरफान Image result for अभिनेता इरफान खानजयपुर: इरफान खान भले ही फिल्म अभिनेता हैं धर्म गुरु नहीं। किन्तु धार्मिक ठेकेदारों द्वारा कुर्बानी के नाम से बलि चढ़ाने की कुप्रथा को रोकने का प्रयास कैसे अनुचित है जिस पर कहा गया की उन्हें धार्मिक ज्ञान नहीं है और उन्हें कुर्बानी या रमजान पर सवाल उठाने से पहले किसी धर्मगुरू से संपर्क कर इसके बारे में सीखना चाहिए था।’ बलि से जुड़े अपने वक्तव्य पर मिल रही आलोचना का उत्तर देते हुए कहा है कि वह धर्मगुरुओं से नहीं डरते क्योंकि वह धार्मिक ठेकेदारों द्वारा चलाए जा रहे देश में नहीं रहते हैं। दो दिन पूर्व इरफान ने जयपुर में बकरीद पर होने वाली कुर्बानी प्रथा पर प्रश्न उठाये थे। उनकी प्रश्न उठाती हुई इस टिप्पणी पर कुछ धर्मगुरुओं ने कटु शब्दों में उन्हें अपने काम पर ध्यान देने को कहा है। किन्तु इरफान ने शनिवार को इसके उत्तर में फेसबुक पर लिखी एक पोस्ट में कहा कि वह धर्मगुरुओं द्वारा चलाए जाने वाले देश में नहीं रह रहे हैं। इरफान ने लिखा ‘कृपया भाइयों, जो भी मेरे बयान से दुखी हैं, या तो आप आत्मविश्लेषण के लिए तैयार नहीं हैं, या फिर आपको निष्कर्ष तक पहुंचने की बहुत जल्दी है। मेरे लिए धर्म व्यक्तिगत आत्मविश्लेषण है, यह करुणा, ज्ञान और संयम का स्रोत है, यह रूढ़ीवादिता और कट्टरता नहीं है। धर्मगुरुओं से मुझे डर नहीं लगता। शुक्र है भगवान का कि मैं धर्म के ठेकेदारों द्वारा चलाए जाने वाले देश में नहीं रहता।’ बता दें कि अपनी आगामी फिल्म 'मदारी' के प्रचार हेतु यपुर पहुंचे इरफान  नेपत्रकारों से बातचीत में कहा 'जितने भी रीति-रिवाज, त्यौहार हैं, हम उनका सही अर्थ भूल गए हैं, हमने उनका तमाशा बना दिया है। कुर्बानी एक प्रमुख त्यौहार है। कुर्बानी का अर्थ बलिदान करना है। किसी दूसरे की बलि चढ़ा करके मैं और आप भला क्या बलिदान कर रहे हैं?' इरफान ने कहा था कि 'जिस समय यह प्रथा चालू हुई होगी, उस समय भेड़-बकरे भोजन के मुख्य स्रोत थे। सभी लोग थे जिन्हें खाने को नहीं मिलता था। उस समय भेड़-बकरे की बलि एक प्रकार से अपनी कोई प्रिय वस्तु की बलि करना और दूसरे लोगों में बांटना था। आज के समय में बाजार से दो बकरे खरीद कर लाए तो उसमें आपकी कुर्बानी क्या है। हर आदमी दिल से पूछे, किसी और की जान लेने से उसे कैसे सवाब मिल जाएगा, कैसे पुण्य मिलेगा।' 
'इस्लाम को बदनाम करने वालों के नाम फतवा' 
अपनी बात पूरी करते हुए इरफान ने कहा कि 'जो फतवा देने वाले लोग हैं, उन लोगों को इस्लाम के नाम को बदनाम करने वालों के खिलाफ फतवा देना चाहिए। उनके खिलाफ देना चाहिए जो आतंकवाद की दुकान चला रहे हैं, जिन्होंने आतंकवाद के धंधे खोल रखे हैं। मेरा सौभाग्य है कि मैं किसी ऐसे देश में नहीं रहता जहां धार्मिक कानून चलता है। मुझे इस पर गर्व है।' 
इरफान के इस वक्तव्य पर कुछ इस्लामिक जानकारों ने आपत्ति जताई। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जयपुर के शहर काजी खालिद उस्मानी ने कहा था ‘इरफान अभिनेता हैं और उन्हें सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना चाहिए। उन्हें धार्मिक ज्ञान नहीं है और उन्हें कुर्बानी या रमजान पर सवाल उठाने से पहले किसी धर्मगुरू से संपर्क कर इसके बारे में सीखना चाहिए था।’ उन्होंने कहा कि इस्लाम अस्पष्ट नहीं है और इरफान को अपना ज्ञान बढ़ाना चाहिए। जयपुर के इस्लामिक स्कॉलर अब्दुल लतीफ ने कहा है कि इरफान कलाकार हैं कोई  धार्मिक मामलों के गुरु नहीं। उन्होंने जो कुछ कहा, उसका कोई महत्व नहीं है और उन्हें अपने निजी स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसा नहीं कहना चाहिए था। 
(यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूँ मेरे 5 दशक के काव्य लेखन व पत्रकारिता के काल में मनोज कुमार के अतिरिक्त कभी किसी कलाकार के व्यक्तिगत चिंतन को विषय नहीं बनाया। फिल्म समीक्षा में कथानक फिल्मांकन तथा सामाजिक पक्ष पर ही लिखा है। ले ) http://samaajdarpan.blogspot.in/2016/07/blog-post.html 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया | इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक
पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है | उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक

Thursday, June 2, 2016

जल संकट से निबटने में जन भागीदारी का हो साथ

जल संकट से निबटने में जन भागीदारी का हो साथ 

जल संकट से निबटने को जन भागीदारी बेहद जरूरीप्रधानमंत्री ने जल संकट के समाधान को लेकर कई प्रदेशों द्वारा अपने स्तर पर किये गये प्रयासों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। इसके बाद भी तथ्य यह है कि वर्तमान में देश के एक दर्जन से राज्यों में सूखे की स्थिति हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात' के 20वें संस्करण में देश में व्याप्त जल संकट से निबटने के लिये जन भागीदारी की अपील की है। ऐसे में मूल प्रश्न यह है कि प्रधानमंत्री की मन की बात देश की जनता के मन को कितना प्रभावित करेगी। क्या प्रधानमंत्री की चिंता और अपील से प्रभावित होकर देशवासी जल दुरूपयोग से लेकर संचयन तक के उपायों को अपनाएंगे। प्रश्न यह भी है कि करोड़ों−अरबों की योजनाओं और भारी भरकम मंत्रालयों एवं सरकारी मशीनरी के बाद भी देश में जल संकट ऐसा गंभीर रूप क्यों धारण कर रहा है। और समाज का बड़ा भाग पर्याप्त पानी से वंचित है। हम सबको सोचना होगा कि, क्या पानी हमारी आवश्यकता भर है, क्या हर जीव की इस आवश्यकता को पूरा करने के प्रति हमारा कोई दायित्व नहीं? कैसे मिलेगा पानी, जब हम उसे नहीं बचाएंगे? इन सभी प्रश्नों के उत्तर में हमें शर्मिंदा होना चाहिए, क्योंकि भारत का भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। ये आने वाले भयावह समय का संकेत है, जब हम पानी की एक बूंद के लिए तरस जाएंगे। 
बचपन से लेकर अभी तक हमें जल के महत्व के बारे में पढ़ाया जाता रहा है, किन्तु इस पर हम कभी व्यवहार नहीं करते हैं। दैनिक जीवन में जाने−अनजाने में हम जल का अपव्यय खूब करते हैं। सवेरे उठते ही सबसे पहले हम शौच के लिए जाते हैं, उसके बाद हम ब्रश या दातून से अपने दांतों की सफाई करते हैं। फिर हम घर की सफाई करते हैं, कपड़े धोते हैं, नहाते हैं, चाय पीते हैं, भोजन पकाते हैं, खेतों की सिंचाई करते हैं और सबसे मुख्य बात है कि पानी पीते हैं। देखा जाए तो हमारे दैनिक जीवन में पानी सबसे बड़ी आवश्यकता है, इसके बिना हम जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। भोजन या अन्य चीजों का विकल्प हो सकता है, किन्तु पानी का विकल्प अभी कुछ भी नहीं है। जन्म से लेकर मृत्यु तक यह एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जिसे हम कभी भी नहीं खोना चाहते हैं। पृथ्वी पर जल की उपलब्धता इस समय प्राय: 73 % है, जिसमें मानवों के उपयोग करने योग्य जल मात्र 2.5 % है। 2.5 % पानी पर ही पूरा विश्व निर्भर है। देश के जितने भी बड़े बांध हैं, उनकी क्षमता 27 % से भी कम रह गई है। 91 जलाशयों का पानी का स्तर गत एक वर्ष में 30 % से भी नीचे पहुंच चुका है। 
स्वतंत्रता बाद से देश में लगभग सभी प्राकृतिक संसाधनों की निर्ममता से लूट हुई है। जल का तो कोई मुल्य हमारी दृष्टी में कभी रहा ही नहीं। हम यही सोचते आये हैं कि प्रकृति का यह अमुल्य कोष कभी कम नहीं होगा। हमारी इसी सोच ने पानी की बर्बादी को बढ़ाया है। नदियों में बढ़ते प्रदूषण और भूजल के अंधाधुंध दोहन ने गंगा गोदावरी के देश में जल संकट खड़ा कर दिया है। यह किसी त्रासदी से कम है क्या कि महाराष्ट्र के लातूर में पानी के लिए खूनी संघर्ष को रोकने के लिए धारा 144 लागू है। कई राज्य भयानक सूखे की स्थिति में हैं। कुंए, तालाब लगभग सूख गए हैं। बावड़ियों का अस्तित्व समाप्त प्राय है। भूजल का स्तर निम्नतम जा चुका है। जिस तेजी से जनसंख्या बढ़ने के साथ कल−कारखाने, उद्योगों और पशुपालन को बढ़ावा दिया गया, उस अनुपात में जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं गया जिस कारण आज गिरता भूगर्भीय जल स्तर घोर चिंता का कारण बना हुआ है। अब लगने लगा है कि आगामी विश्व यु़द्ध पानी के लिए ही होगा। 
जल संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय झारखण्ड के सिमोन उरांव वर्तमान जल संकट को लेकर कहते हैं कि 'लोग धरती से पानी निकालना जानते हैं। उसे देना नहीं।' देखा जाए तो पहले सभी स्थानों पर तालाब, कुएं और बांध थे, जिसमें बरसात का पानी जमा होता था। अब धड़ल्ले से बोरिंग की जा रही है। जिससे वर्षा का पानी जमा नहीं हो पाता है। शहरों में तो जितनी भूमि बची थी लगभग सभी में अपार्टमेंट और घर बन रहे हैं। उनमें धरती का कलेजा चीरकर 800−1000 फुट नीचे से पानी निकाला जा रहा है। वहां से पानी निकल रहा है, पर जा नहीं रहा तो ऐसे में जलसंकट नहीं होगा तो क्या होगा? विश्व में जल का संकट कोने−कोने व्याप्त है। आज हर क्षेत्र में विकास हो रहा है। विश्व औद्योगीकरण की राह पर चल रहा है, किंतु स्वच्छ और रोग रहित जल मिल पाना कठिन हो रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा 29 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए मूल्यांकन में 445 नदियों में से 275 नदियां प्रदूषित पाई गईं। विश्व भर में स्वच्छ जल की अनुपलब्धता के चलते ही, जल जनित रोग महामारी का रूप ले रहे हैं। 
आंकड़ों के अनुसार अभी विश्व में प्राय: पौने 2 अरब लोगों को शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। यह सोचना ही होगा कि केवल पानी को हम किसी कल कारखाने में नहीं बना सकते हैं इसलिए प्रकृति प्रदत्त जल का संरक्षण करना है और एक−एक बूंद जल के महत्व को समझना होना होगा। हमें वर्षा जल के संरक्षण के लिए चेतना ही होगा। अंधाधुंध औद्योगीकरण और तेजी से फैलते कंक्रीट के जंगलों ने धरती की प्यास को बुझने से रोका है। धरती प्यासी है और जल प्रबंधन के लिए कोई ठोस प्रभावी नीति नहीं होने से, स्थिति अनियंत्रित होती जा रही है। कहने को तो धरातल पर तीन चौथाई पानी है किन्तु पीने योग्य कितना यह सर्वविदित है! रेगिस्तानी क्षत्रों का भयावह चित्र चिंतनीय और दुखद है। पानी के लिए आज भी लोगों को मीलों पैदल जाना पड़ता है। आधुनिकता से रंगे इस काल में भी प्यास बुझाने हेतु जल जनित रोग हो जाएं और प्राण संकट पर भी गंदा पानी पीना बाध्यता है। 
प्रधानमंत्री ने जल संकट से उबरने के लिये जन भागीदारी की अपील की है। ये सच है कि बड़े से बड़ी सरकार या व्यवस्था बिना जन भागीदारी के अपने मंतव्यों और उद्देश्यों में सफल नहीं हो सकती है। जहां देश के अनेक शहरों, कस्बों और गांवों में पानी का भारी संकट है, और स्थानीय नागरिक सरकार और सरकारी तंत्र आश्रित हाथ पर हाथ धरकर बैठे हैं वहीं कुछ ऐसे उदहारण भी हैं जहां स्थानीय लोगों ने अपने बल पर जल संकट से मुक्ति पाई है। बेंगलुरु की सरजापुर रोड पर स्थित आवासीय कॉलोनी 'रेनबो ड्राइव' के 250 घरों में पानी की आपूर्ति तक नहीं थी। आज यह कॉलोनी पानी के मामले में आत्मनिर्भर है और यहां से दूसरी कॉलोनियों में भी पानी आपूर्ति देने लगा है। यह संभव हुआ है पानी बचाने, संग्रह करने और पुनः उपयोगी बनाने से। वर्षा जल संग्रहण के लिए कॉलोनी के हर घर में पुनरुपयोग कुएं बनाए गए हैं। राजस्थान के लोगों ने मरी हुई एक या दो नहीं, बल्कि सात नदियों को फिर से जीवन देकर ये प्रमाणित कर दिया है कि मानव में यदि दृढ़ शक्ति हो तो कुछ भी संभव हो सकता है। जब राजस्थान के लोग, राजस्थान की सात नदियों को पुनर्जीवित कर सकते हैं तो शेष नदियां साफ क्यों नहीं हो सकती हैं? पंजाब के होशियारपुर में बहती काली बीन नदी कभी अति प्रदूषित थी। किन्तु सिख धर्मगुरु बलबीर सिंह सीचेवाल की पहल ने उस नदी को स्वच्छ करवा दिया। 
देश में पानी की समस्या अपने चरम पर है। जल अपव्यय धड़ल्ले से हो रहा है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि लोग इसके महत्त्व के बारे में जानते हुए भी निश्चिन्त बने हुए हैं और इसका अपव्यय कर रहे हैं। हमें यह समझना होगा और समझाना होगा कि प्रकृति ने हमें कई अमुल्य उपहार सौंपे है उनमें से पानी भी एक है। इसलिए हमें इसे सहेज कर रखना है। पानी की कमी को वही लोग समझ सकते हैं, जो इसकी कमी से दो चार होते हैं। हम खाने के बिना दो−तीन दिन जीवित रह सकते हैं किन्तु जल बिना जीवन की कल्पना ही असम्भव -सा लगता है। आय के साधन जुटाने में मनुष्य पानी का अंधाधुंध उपयोग कर रहा है। हमें भविष्य की चिंता बिल्कुल नहीं है और न ही हम करना चाहते हैं। यदि विकास की अंधी दौड़ में मनुष्य इसी प्रकार लगा रहा तो हमारी आने वाली पीढ़ी प्रकृति के अमुल्य उपहार जल से वंचित रह सकती है। 
वर्षा के मौसम में जो पानी बरसता है उसे संरक्षित करने की पूर्ववर्ती सरकार की कोई योजना नहीं रही। ऐसे में समस्या तो होगी ही। वर्षा से पूर्व गांवों में छोटे−छोटे लघु बांध बनाकर वर्षा जल को संरक्षित किया जाना चाहिए। शहर में जितने भी तालाब और बांध हैं। उन्हें गहरा किया जाना चाहिए जिससे उनकी जल संग्रह की क्षमता बढ़े। सभी घरों और अपार्टमेंट में जल संचयन को अनिवार्य किया जाना चाहिए तभी जलसंकट का सामना किया जा सकेगा। गांव और टोले में कुआं रहेगा, तो उसमें वर्षा का पानी जायेगा। तब भूजल और वर्षा का पानी मेल खाएगा। आवश्यक नहीं है कि आप भगीरथ बन जाएं, किन्तु दैनिक जीवन में एक−एक बूंद बचाने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। खुला हुआ नल बंद करें, अनावश्यक पानी बहाया न करें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें। इसे अपना अभ्यास बनायें। हमारा छोटा सा अभ्यास आने वाली पीढ़ियों को जल के रूप में जीवन दे सकता है। एक रपट के अनुसार, भारत 2025 तक भीषण जल संकट वाला देश बन जाएगा। हमारे पास मात्र आठ वर्षों का समय है, जब हम अपने प्रयासों से धरती की बंजर होती कोख को पुन: सींच सकते हैं। यदि हम जीना चाहते हैं, तो हमें ये करना ही होगा। 
मई में हमारे प्र मं ने विभिन्न राज्यों के मु मं से बैठकों द्वारा इस समस्या के समाधान के जो अपूर्व प्रभावी उपाय किये हैं, उसे जनसहभागिता का हमारा योगदान, भारत में 2025 तक भीषण जल संकट की उस सम्भावना का यह प्रबल प्रत्युत्तर होगा। हम बदलें, देश बनेगा; भविष्य बनेगा -वन्देमातरम। 
हम जो भी कार्य करते हैं, परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं |
देश की बिगड चुकी दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता |
आओ मिलकर कार्य संस्कृति की दिशा व दशा श्रेष्ठ बनायें-तिलक
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