Wednesday, April 20, 2022
#सामयिक विषयों पर चर्चा YDMS👑
सामयिक विषय
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हिंदुओं पर घात अंतर्राष्ट्रीय जिहादी कुचक्र, रासुका में हो कार्यवाही: डॉ सुरेन्द्र जैन
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*युदस/विहिप नदि 19 अप्रैल 22:* विहिप की 16 अप्रैल को जारी प्रेस विज्ञप्ति (संपादित) के अनुसार, विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ सुरेन्द्र कुमार जैन ने कहा है कि रामनवमी के पावन कार्यक्रमों पर मुस्लिम समाज द्वारा किए जा रहे हिंसक घातक्रम, निर्बाध चल रहा है। उड़ीसा, गोवा अपेक्षाकृत शांत प्रदेश माने जाते हैं। वहां भी रामोत्सव पर घात घोर चिंता का विषय है। विगत दिनों JNU सहित 20 से अधिक स्थानों पर रामनवमी के आयोजनों पर हिंसक घात किए गए। घरों की छतों से पत्थर, ईटें, पेट्रोल बम, तेजाब की बोतलें आदि फेंके गये। अवैध हथियार लहराते हुए जिहादियों की भीड़ ने हिंदुओं पर घात किए। महिलाओं की अस्मिता लूटने का प्रयास किया गया, मंदिरों को तोड़ा गया तथा पुलिसकर्मियों पर भी प्राणघाति घात किए गए।
विहिप का मानना है कि ये घात आतंकवादी कार्यवाही हैं। हर हिंसक और उसको शरण देने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत कार्यवाही होनी चाहिए। अल-जवाहरी के वीडियो से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय कुचक्र है। भारत के एक आतंकी संगठन पीएफआई की भूमिका अब स्पष्ट रूप से सामने आ रही है। इन हिंसक घात के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के भारत विरोधी "टूल किट गैंग" का आर्थिक, बौद्धिक व राजनीतिक समर्थन मिल रहा है। दुर्भाग्य से भारत के अधिकांश मुस्लिम नेता और कांग्रेस तथा उनके कोख से निकले सभी दल, इन घातक दलदल में एक साथ खड़े हो गए हैं। टीवी स्टूडियो से लेकर सड़क और न्यायालय तक हर कहीं यह "टूल किट गैंग" इन जिहादियों की रक्षा में एकजुट हो गया है। सोशल मीडिया पर भी मुसलमानों को भड़काने वाले प्रयास विदेशों में रहने वाले कई धनिक जेहादी कर रहे हैं। गत दिनों सोशल मीडिया पर एक बड़ी सक्रियता इन जिहादी तत्वों के द्वारा दिखाई दी। ये भारत विरोधी वातावरण बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे। यह तथ्य सामने आया कि इसमें भारत से बाहर के लोगों का 87% सहयोग है। हमारा यह आरोप सिद्ध हो जाता है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय कुचक्र के अंतर्गत किया जा रहा है। ऐसा लगता है कि वे भारत में गृह युद्ध की स्थिति निर्माण करना चाहते हैं।
डॉ जैन ने कहा कि यह बर्बर हिंसा रमजान के कथित पवित्र माह में हो रही है। क्या जिहादियों की पवित्रता का अर्थ हिंदुओं का नरसंहार है, महिलाओं पर बलात्कार के प्रयास, मंदिरों को ध्वस्त करना, मकानों व दुकानों को लूट कर आग लगा देना, पुलिसकर्मियों पर गोलियां चलाना दलितों के घरों को आग लगाकर उनकी महिलाओं के साथ अपमान करना है?
उन्होंने कहा कि एक बात स्पष्ट हो गई है कि, "मीम और भीम" के नारे लगाने वाले भी पीएफआई के ही 'एजेंट' है। अनुसूचित समाज का वर्ग सदा से जिहादियों का सामना करने में सबसे आगे रहता है। इनके साथ मित्रता का नारा दलितों के जनधन पर एक निकृष्ट राजनीति करने का प्रयास है। अब उनका घृणित चेहरा भी प्रत्यक्ष हो गया है। उनके मुंह से इन दानवों के विरोध लिए, एक शब्द भी निकला?
इन घटनाओं से कुछ आधारभूत प्रश्न खड़े होते हैं :
1. मुस्लिम समाज की हठधर्मिता के कारण ही धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ था। स्वतंत्रता के बाद भी ये जिहादी हिंदुओं पर घात करने का कोई ना कोई कारण ढूंढ लेते हैं। CAA का भारतीय मुस्लिम समाज से कोई लेना-देना नहीं था, किन्तु शाहीन बाग, शिव विहार जैसे पचासियों स्थानों पर इन्होंने कानून व्यवस्था को ध्वस्त किया और हिंदुओं पर घात किए। हिजाब का विषय एक विद्यालय के गणवेश का विषय था। परंतु जिस प्रकार निर्णय देने वाले न्यायाधीशों को धमकी दी गई और हर्षा की निर्मम हत्या की गई, उससे इनकी मानसिकता स्पष्ट हो जाती है। कुछ लोग कहते हैं कि जिनको भारत में हिंदुओं से प्यार था वही भारत में रह गए। यदि यह सत्य है तो ये घटनाएं क्यों होती हैं? क्यों अभी तक कोई बड़ा मुस्लिम नेता इन हिंसक घटनाओं या राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का विरोध नहीं करता? मुर्तजा जैसे आतंकी के साथ ये सब क्यों खड़े हुए दिखाई देते हैं?
((प्रश्न: 30 करोड़ में से कुछ मुट्ठी भर, अब्दुल कलाम अथवा अब्दुल हमीद, अपवाद, अन्य कितने हैं? इसके विपरीत जिहादियों के समर्थन में करोड़ों हैं?))
2. एक बात बार-बार कही जाती है कि भड़काऊ नारे लगाए गए। कौन से भड़काऊ नारे? ‘जय श्री राम’, व ‘भारत माता की जय’ भड़काऊ नारा कैसे हो सकते हैं? इसके विपरीत कट्टरपंथियों के कई कार्यक्रमों में 'सर धड़ से जुदा होगा' या 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' नारे लगाना क्या भड़काऊ नारे नहीं है? विश्व इतिहास का सबसे भड़काऊ नारा है तो "ला इलाह इल्लल्लाह, मोहम्मद उर रसूल अल्लाह" है। क्या दिन में 5 बार अजान के समय 'केवल अल्लाह की पूजा की जा सकती है किसी और की नहीं' यह कहकर वे हिंदुओं को भड़काने का प्रयास नहीं करते? यदि भड़काऊ नारे के नाम पर ही रामनवमी पर हमलों को ये उचित 'जायज' ठहराते हैं तो इनके नारों के विरोध में हिंदुओं को क्या करना चाहिए?
3. इस्लाम से सबसे अधिक पीड़ित समाज भारत के मुसलमान हैं। 85% मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे, जिनको बलात् मूसलमान बनाया गया। उनके मन में इन मुस्लिम आक्रमणकारियों के प्रति श्रद्धा नहीं, घृणा होनी चाहिए। ऐसा लगता है कि भारत का मुसलमान 'स्टॉकहोम सिंड्रोम' से पीड़ित है। इस सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति अपने ऊपर अत्याचार करने वाले से प्यार करने लग जाता है और उसके मार्ग पर चलने लग जाता है। किन्तु सौभाग्य से एक दूसरा वर्ग भी है, जो दारा शिकोह, रसखान और एपीजे अब्दुल कलाम को अपना आदर्श मानता है। इस दूसरे देश भक्त समाज की आवाज दब रही है। दुर्भाग्य से जो आक्रमणकारियों के साथ खड़ा है, वही नेतृत्व करता हुआ दिखाई देता है। इसलिए रजाकारों के मानस पुत्र सहित सभी मुस्लिम नेता आज मुस्लिम समाज को भड़काने का प्रयास करते हैं।
4. कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति के कारण ही भारत का विभाजन हुआ था। दुर्भाग्य से कांग्रेस की यह नीति स्वतंत्रता के बाद भी नहीं बदली। स्वतंत्र भारत में आतंकवाद के सभी स्वरूपों के पीछे कांग्रेस और इनके कोख से जन्म लेने वाले सभी तथाकथित शर्म निरपेक्ष दलों की दलदल हैं। यह तथ्य है कि मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार के संरक्षण में ही SIMI फली फूली थी और आज भी इन्होंने एक गलत तथ्य को ट्वीट करके मध्य प्रदेश को दंगों की आग में झोंकने का असफल प्रयास किया है। राजस्थान में दंगाइयों को पकड़ने के विपरीत गहलोत सरकार ने जिस प्रकार सभी धार्मिक शोभा यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया है, वह इसी मानसिकता को दर्शाता है। रामनवमी, महावीर जयंती, गुरु तेग बहादुर आदि की शोभायात्राओं के ऊपर तो पाबंदी लग गई, किन्तु यह निश्चित है मोहर्रम आने तक यह पाबंदी हटा दी जायेगी। हिंदुओं की शोभायात्रा पर पाबंदी लगाने वाली कांग्रेस की शव यात्रा शीघ्र ही निकालेगी यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
5. यह विचारणीय तथ्य है कि दंगे वहीं क्यों होते हैं जहां हिंदू अल्पसंख्या में होता है। विश्व हिंदू परिषद गंभीरता से चाहती है कि हमें वह दिन नहीं आने देना चाहिए कि हिंदू इन दंगाइयों को उनकी ही भाषा में हिंदू बहुल क्षेत्रों में प्रत्युत्तर देने लगे। इसका दायित्व भारत के सभी प्रबुद्ध लोगों और राजनीतिक दलों का ही है। यदि ऐसा हुआ तो क्या परिणाम होगा, इसका विचार सरलता से किया जा सकता है। किन्तु एक तथ्य स्मरण रखना चाहिए, जहां हिंदू अल्पसंख्यक है क्या वह वहां सदा पिटता रहा है या पिटता रहेगा? इतिहास बता रहा है अब यह सत्य नहीं है। मुजफ्फरनगर, शामली, शिव विहार आदि कई स्थानों के अनुभव जेहादी नेता भूले नहीं होंगे।
विश्व हिंदू परिषद देश की सभी सरकारों और राजनीतिक दलों से अपील करती कि वे अपने राजनीतिक स्वार्थ को छोड़कर देशहित का विचार करें। देश को विकासमार्ग पर ले जाने के अपने दायित्व को स्वीकार करें। उन्हें इतिहास का ध्यान रखना चाहिए कि मोहम्मद बिन कासिम का साथ देने वाले जयचंद की क्या दुर्गति हुई थी। अपने स्वार्थ के लिए देश हित की बली चढ़ाने वालों की दुर्गति यही होती है।
विहिप हिन्दू समाज का भी आह्वान करती है कि 'पलायन नहीं पराक्रम' हिन्दू का संकल्प रहा है। जहाँ की सरकारें दंगाईयों पर कठोर कार्यवाही कर रही हैं, उनका साथ दें और जहाँ वे दंगाइयों के साथ हैं, वहाँ अपने सामर्थ्य को जागृत करें। हमें दंगाइयों से भयभीत न होते हुए स्वाभिमान पूर्ण जीवन जीने की परिस्थितियों का निर्माण करना है। दंगाइयों को स्मरण रखना चाहिए, यह 1946 नहीं है। संकल्प और शौर्यवान हिंदू उनके षड्यंत्रों को सफल नहीं होने देगा।
- तिलक रेलन आज़ाद वरिष्ठ पत्रकार,
युगदर्पण®2001 मीडिया समूह YDMS👑
https://vhp.org/press_releases/
Saturday, August 28, 2021
गू -गल की सड़ांध!? कैसे हुआ अर्थ कुअर्थ?
गू -गल की सड़ांध!? कैसे हुआ अर्थ कुअर्थ?
यह ब्लाग शीर्षक जीवन शैली का दर्पण है। इसे गू -गल की सड़ांध ने बदला प्रदर्शन दर्शन कोई मेल है??
एक ब्लॉग का नाम है शर्म-निरपेक्षता का उपचार। अर्थात छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर फैलती शर्मनिरपेक्षता के निर्लज्ज देशद्रोह का उपचार। राष्ट्रहित सर्वोपरि आधारित एक समर्पित राष्ट्रीय चिंतन।
किन्तु गूगल की संग्रहण नीति, उसे अंग्रेजी में अनुवाद करने की है। हिन्दी से अंग्रेजी संग्रह कर, पुनः हिन्दी में इसने मशीन अनुवाद उसके भाषांतरण से भावनात्मक परिवर्तन करके, लिखा सूक्ष्म निष्पादन, !?... !? पुनः उसे यथास्थिति देने में असफल रहता है। इस प्रकार अर्थ का अनर्थ हो जाता है। इतने वर्षों इस पर ध्यान दिया नहीं, मूल विषय की छवि और 10 वर्ष पूर्व की लोकप्रियता को नष्ट कर दिया। निरंतरता के अभाव में जो दिखता है वही समझ लिया जाता है।
भारतस्य शर्मनिरपेक्ष व्यवस्था दर्पण:- शर्मनिरपेक्षता का अर्थ सापेक्षता नहीं। इसके विपरीत है। किन्तु दोहरा भाषांतरण सब उल्टा-पुल्टा कर दिया।
गूगल से गू गलने की सड़ांध आने लगी। इसे बदलना होगा। स्वदेशी विकल्प लाओ, जड़ों से जुड़ें।
तिलक रेलन आज़ाद वरिष्ठ पत्रकार -युगदर्पण ®2001 मीडिया समूह YDMS👑
Monday, January 20, 2020
YDMS👑प्रस्तुति... DD-Live YDMS दूरदर्पण, CD-Live YDMS चुनावदर्पण देश को समर्पित, दो यू-टयूब राष्ट्रीय चैनल.
👑आज अपने जन्म दिवस के अवसर पर, देश को समर्पित हैं, दो यू-टयूब राष्ट्रीय चैनल
सकारात्मक सार्थक श्रेष्ठ चयनित समाचार का प्रतीक YDMS👑प्रस्तुति
DD-Live YDMS दूरदर्पण विविध राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय विषयों पर दो दर्जन प्ले-सूची https://www.youtube.com/channel/UCHK9opMlYUfj0yTI6XovOFg एवं
देश की राजनीति पर युगदर्पण मीडिया समूह का नया यू-टयूब चैनल CD-Live YDMS चुनावदर्पण
https://www.youtube.com/channel/UCjS_ujNAXXQXD4JZXYB-d8Q/channels?disable_polymer=true
कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका; विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है | उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
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Saturday, July 16, 2016
अंतरर्राज्य परिषद् की 11वीं बैठक को प्रमं का उद्घाटन सम्बोधन
नदि तिलक। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुमं व उप-राज्यपाल और कबीना सहयोगियों, से अंतर्राज्यीय परि की इस मुख्य बैठक के उद्घाटन सम्बोधन में स्वागत करते हुए प्र मं मोदी ने उनसे कहा- ऐसे अवसर कम ही आते हैं जब केंद्र और राज्यों का नेतृत्व एक साथ एक स्थान पर उपस्थित हो। मोदी ने इसे आम जनता के हितों पर बात करने के लिए, उनकी समस्याओं के निपटारे के लिए, एक साथ मिलकर ठोस निर्णय लेने के लिए सहकारी संघवाद का यह मंच, श्रेष्ठ उदाहरण तथा संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि को दर्शाने वाला भी बताया है।
मोदी ने 3 डी पर बल देते कहा प्राय: 16 वर्ष पूर्व इसी मंच से कही गई पूर्व प्रधानमंत्री और हमारे श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की बात से शुरु करूंगा, वाजपेयी जी ने कहा था कि-
“भारत जैसे बड़े और विविधता से भरे हुए लोकतंत्र में Debate यानि वाद-विवाद, Deliberation यानि विवेचना और Discussion यानि विचार-विमर्श से ही ऐसी नीतियां बन सकती हैं जो जमीनी सच्चाई का ध्यान रखती हों। ये तीनों बातें, नीतियों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने में भी मदद करती हैं। इंटर स्टेट काउंसिल एक ऐसा मंच है जिसका इस्तेमाल नीतियों को बनाने और उन्हें लागू करने में किया जा सकता है। इसलिए लोकतंत्र, समाज और हमारी राज्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, इस मंच का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए”।
मोदी ने इसे केंद्र -राज्य और अंतर्राज्यीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का सबसे बड़ा मंच बताया। जबकि 2006 के बाद लंबे अंतराल तक ये बैठक नहीं हो पाई, किन्तु गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का प्रयास पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते कहा कि गत एक वर्ष में वे देश भर की पाँच आंचलिक परिषदों की बैठक बुला चुके हैं। मोदी ने कहा कि इस मध्य संवाद और संपर्क का क्रम बढ़ने का ही परिणाम है कि आज हम सभी यहां एकत्र हुए हैं।
“भारत जैसे बड़े और विविधता से भरे हुए लोकतंत्र में Debate यानि वाद-विवाद, Deliberation यानि विवेचना और Discussion यानि विचार-विमर्श से ही ऐसी नीतियां बन सकती हैं जो जमीनी सच्चाई का ध्यान रखती हों। ये तीनों बातें, नीतियों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने में भी मदद करती हैं। इंटर स्टेट काउंसिल एक ऐसा मंच है जिसका इस्तेमाल नीतियों को बनाने और उन्हें लागू करने में किया जा सकता है। इसलिए लोकतंत्र, समाज और हमारी राज्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, इस मंच का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए”।
मोदी ने इसे केंद्र -राज्य और अंतर्राज्यीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का सबसे बड़ा मंच बताया। जबकि 2006 के बाद लंबे अंतराल तक ये बैठक नहीं हो पाई, किन्तु गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का प्रयास पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते कहा कि गत एक वर्ष में वे देश भर की पाँच आंचलिक परिषदों की बैठक बुला चुके हैं। मोदी ने कहा कि इस मध्य संवाद और संपर्क का क्रम बढ़ने का ही परिणाम है कि आज हम सभी यहां एकत्र हुए हैं।
मोदी ने कहा देश का विकास तभी संभव है जब केंद्र और राज्य सरकारें कंधे से कंधा मिलाकर चलें। किसी भी सरकार के लिए कठिन होगा कि वो मात्र अपने दम पर कोई योजना को सफल कर सके। इसलिए दायित्वों के साथ ही वित्तीय संसाधनों की भी अपनी महत्ता है। 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की स्वीकृति के साथ केंद्रीय करों में राज्यों की भागीदारी 32 % से बढ़ाकर 42 % कर दी गई है। अर्थात अब राज्यों के पास अधिक राशि आ रही है जिसका उपयोग वो अपनी आवश्यकतानुसार कर रहे हैं।राज्यों को केंद्र से वर्ष 2014-15 की तुलना में गत वर्ष 2015-16 के 21 % अधिक राशि मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त करते कहा इसी प्रकार पंचायतों और स्थानीय निकायों को 14वें वित्त आयोग की अवधि में 2 लाख 87 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी जो विगत से काफी अधिक है।
प्राकृतिक संसाधनों से होने वाली आय में भी राज्यों के अधिकारों का ध्यान रखा जा रहा है। कोयला खदानों की नीलामी से राज्यों को आने वाले वर्षों में 3 लाख 35 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। कोयले के अतिरिक्त भी दूसरे खनन से राज्यों को 18 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। इसी प्रकार एक कानून में परिवर्तन द्वारा बैंक में रखे हुए प्राय: 40 हजार करोड़ रुपए को भी राज्यों को देने का प्रयास किया जा रहा है।
व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ने के कारण जो राशी बच रही है, उसे भी केंद्र सरकार आपके साथ साझा करना चाहती है। एक उदाहरण केरोसिन का ही है। गावों में बिजली कनेक्शन बढ़ रहे हैं। आने वाले तीन वर्ष में सरकार 5 करोड़ नए गैस कनेक्शन देने जा रही है। रसोई गैस की आपूर्ति भी और बढ़ेगी। इन प्रयासों का सीधा प्रभाव केरोसिन की खपत पर पड़ा है। अभी चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने शहर को केरोसिन मुक्त क्षेत्र घोषित किया है। अब केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसके तहत केरोसिन की खपत में कमी करने पर, केंद्र छूट के रूप में जो पैसा खर्च करता था, उसका 75 % राज्यों को अनुदान के रूप में देगा। कर्नाटक सरकार ने इस पहल पर तेजी दिखाते हुए अपना प्रस्ताव पेट्रोलियम मंत्रालय को भेज दिया था, जिसे स्वीकार करने के बाद राज्य सरकार को अनुदान का भुगतान कर दिया गया है। यदि सभी राज्य केरोसिन की खपत को 25 % कम करने का निर्णय लेते हैं और इस पर व्यवहार करके दिखाते हैं, तो इस वर्ष उन्हें प्राय: 1600 करोड़ रुपए के अनुदान का लाभ मिल सकता है।
उनके सम्बोधन में प्राय: ये बातें भी कही गईं -
व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ने के कारण जो राशी बच रही है, उसे भी केंद्र सरकार आपके साथ साझा करना चाहती है। एक उदाहरण केरोसिन का ही है। गावों में बिजली कनेक्शन बढ़ रहे हैं। आने वाले तीन वर्ष में सरकार 5 करोड़ नए गैस कनेक्शन देने जा रही है। रसोई गैस की आपूर्ति भी और बढ़ेगी। इन प्रयासों का सीधा प्रभाव केरोसिन की खपत पर पड़ा है। अभी चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने शहर को केरोसिन मुक्त क्षेत्र घोषित किया है। अब केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसके तहत केरोसिन की खपत में कमी करने पर, केंद्र छूट के रूप में जो पैसा खर्च करता था, उसका 75 % राज्यों को अनुदान के रूप में देगा। कर्नाटक सरकार ने इस पहल पर तेजी दिखाते हुए अपना प्रस्ताव पेट्रोलियम मंत्रालय को भेज दिया था, जिसे स्वीकार करने के बाद राज्य सरकार को अनुदान का भुगतान कर दिया गया है। यदि सभी राज्य केरोसिन की खपत को 25 % कम करने का निर्णय लेते हैं और इस पर व्यवहार करके दिखाते हैं, तो इस वर्ष उन्हें प्राय: 1600 करोड़ रुपए के अनुदान का लाभ मिल सकता है।
उनके सम्बोधन में प्राय: ये बातें भी कही गईं -
केंद्र -राज्य सम्बन्धों के साथ ही अं परि उन विषयों पर भी चर्चा का मंच है जो देश की बड़ी संख्या से जुड़े हुए हैं। कैसे नीति-निर्धारण के स्तर पर इन मुद्दों को सुलझाने के लिए एक राय बनाई जा सकती है, कैसे एक दूसरे से परस्पर जुड़े विषयों को सुलझाया जा सकता है।
इसलिए इस बार अं परि में पुंछी आयोग की रपट के साथ ही तीन और मुख्य विषयों को कार्यावली में रखा गया है।
पहला है- ‘आधार’ । संसद से ‘आधार’ एक्ट 2016 पास हो चुका है। इस कानून के पास होने के बाद अब हमें चाहे छूट हो या फिर सभी दूसरी सुविधाएं, ‘कहते में नगत स्थांतरण’ के लिए आधार के प्रयोग की सुविधा मिल गई है। 128 करोड़ की संख्या वाले हमारे देश में अब तक 102 करोड़ लोगों को आधार कार्ड बांटे जा चुके हैं। यानि अब देश की 79 % जनसंख्या के पास आधार कार्ड है। यदि वयस्कों की बात करें तो देश के 96 % नागरिकों के पास आधार कार्ड है। आप सभी के समर्थन से इस वर्ष के अंत तक हम देश के हर नागरिक को आधार कार्ड से जोड़ लेंगे।
आज के समय में साधारण सा आधार कार्ड, लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है। सरकारी छूट या सहायता पर जिस व्यक्ति का अधिकार है, अब उसे ही इसका लाभ मिल रहा है, पैसा सीधे उसी के खाते में जा रहा है। इससे पारदर्शिता तो आई ही है, हजारों करोड़ रुपए की बचत हो रही है जिसे विकास के काम पर व्यय किया जा रहा है।
मित्रों, बाबा साहेब अम्बेडकर ने लिखा था कि- “भारत जैसे देश में सामाजिक सुधार का मार्ग उतना ही कठिन है, उतनी ही अड़चनों से भरा हुआ है जितना स्वर्ग जाने का मार्ग। जब आप सामाजिक सुधार की सोचते हैं तो आपको मित्र कम, आलोचक अधिक मिलते हैं” ।
आज भी उनकी लिखी बातें, उतनी ही प्रासंगिक है। इसलिए आलोचनाओं से बचते हुए, हमें एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए, सामाजिक सुधार की योजनाओं को आगे बढ़ाने पर बल देना होगा। इनमें से बहुत सी योजनाओं की रूप-रेखा, नीति आयोग में मुख्यमंत्रियों के ही उप-समूह ने तैयार की है।
अं परि में जिस एक और मुख्य विषय पर चर्चा होनी है, वह है शिक्षा । भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारे युवा ही हैं। 30 करोड़ से अधिक बच्चे अभी स्कूल जाने वाली आयु में हैं। इसलिए हमारे देश में आने वाले कई वर्षों तक विश्व को कुशल जनशक्ति देने की क्षमता है। केंद्र और राज्यों को मिलकर बच्चों को शिक्षा का ऐसा वातावरण देना होगा जिसमें वे आज की आवश्यकतानुसार स्वयं को तैयार कर सकें, अपने कौशल का विकास कर सकें।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के शब्दों में कहें तो- शिक्षा एक निवेश है। हम पेड़-पौधों को लगाते समय उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। हमें पता होता है कि यही पेड़-पौधे आगे जाकर हमें प्राण वायु देंगे, पर्यावरण में सहयोग करेंगे। उसी प्रकार शिक्षा भी एक निवेश है जिसका लाभ समाज को होता है।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने ये बातें 1965 में कहीं थीं। तब से लेकर आज तक हम शिक्षा की दृष्टि से बहुत लंबी यात्रा पूरी कर चुके हैं। किन्तु अब भी शिक्षा के स्तर को लेकर बहुत कुछ किया जाना शेष है। हमारी शिक्षा व्यवस्था से बच्चे वास्तव में कितना शिक्षित हो रहे हैं, इसे भी हमें अपनी चर्चा में लाना होगा।
इसलिए बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधारने का सबसे बड़ा ढंग है कि उन्हें शिक्षा का उद्देश्य भी समझाया जाए। मात्र स्कूल जाना ही पढ़ाई नहीं है। पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए, जो बच्चों को प्रश्न पूछना सिखाए, उन्हें ज्ञान अर्जित करना और ज्ञान बढ़ाना सिखाए, जो जीवन के हर मोड़ पर उन्हें कुछ ना कुछ सीखते रहने के लिए प्रेरित करे।
स्वामी विवेकानंद भी कहते थे कि शिक्षा का अर्थ मात्र पुस्तकी ज्ञान पाना नहीं है। शिक्षा का लक्ष्य है चरित्र का निर्माण, शिक्षा का अर्थ है मस्तिष्क को सुदृढ़ करना, अपनी बौद्धिक शक्ति को बढ़ाना, जिससे स्वयं के पैरों पर खड़ा हुआ जा सके।
21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में, जिस तरह की कुशलता और योग्यता की आवश्यकता है, उसमें हम सभी का दायित्व है कि युवाओं के पास कोई न कोई कौशल अवश्य हो। हमें युवाओं को ऐसा बनाना होगा कि वे अलग सोच व तर्क के साथ सोचें और अपने काम में रचनात्मक दिखें।
पहला है- ‘आधार’ । संसद से ‘आधार’ एक्ट 2016 पास हो चुका है। इस कानून के पास होने के बाद अब हमें चाहे छूट हो या फिर सभी दूसरी सुविधाएं, ‘कहते में नगत स्थांतरण’ के लिए आधार के प्रयोग की सुविधा मिल गई है। 128 करोड़ की संख्या वाले हमारे देश में अब तक 102 करोड़ लोगों को आधार कार्ड बांटे जा चुके हैं। यानि अब देश की 79 % जनसंख्या के पास आधार कार्ड है। यदि वयस्कों की बात करें तो देश के 96 % नागरिकों के पास आधार कार्ड है। आप सभी के समर्थन से इस वर्ष के अंत तक हम देश के हर नागरिक को आधार कार्ड से जोड़ लेंगे।
आज के समय में साधारण सा आधार कार्ड, लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है। सरकारी छूट या सहायता पर जिस व्यक्ति का अधिकार है, अब उसे ही इसका लाभ मिल रहा है, पैसा सीधे उसी के खाते में जा रहा है। इससे पारदर्शिता तो आई ही है, हजारों करोड़ रुपए की बचत हो रही है जिसे विकास के काम पर व्यय किया जा रहा है।
मित्रों, बाबा साहेब अम्बेडकर ने लिखा था कि- “भारत जैसे देश में सामाजिक सुधार का मार्ग उतना ही कठिन है, उतनी ही अड़चनों से भरा हुआ है जितना स्वर्ग जाने का मार्ग। जब आप सामाजिक सुधार की सोचते हैं तो आपको मित्र कम, आलोचक अधिक मिलते हैं” ।
आज भी उनकी लिखी बातें, उतनी ही प्रासंगिक है। इसलिए आलोचनाओं से बचते हुए, हमें एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए, सामाजिक सुधार की योजनाओं को आगे बढ़ाने पर बल देना होगा। इनमें से बहुत सी योजनाओं की रूप-रेखा, नीति आयोग में मुख्यमंत्रियों के ही उप-समूह ने तैयार की है।
अं परि में जिस एक और मुख्य विषय पर चर्चा होनी है, वह है शिक्षा । भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारे युवा ही हैं। 30 करोड़ से अधिक बच्चे अभी स्कूल जाने वाली आयु में हैं। इसलिए हमारे देश में आने वाले कई वर्षों तक विश्व को कुशल जनशक्ति देने की क्षमता है। केंद्र और राज्यों को मिलकर बच्चों को शिक्षा का ऐसा वातावरण देना होगा जिसमें वे आज की आवश्यकतानुसार स्वयं को तैयार कर सकें, अपने कौशल का विकास कर सकें।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के शब्दों में कहें तो- शिक्षा एक निवेश है। हम पेड़-पौधों को लगाते समय उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। हमें पता होता है कि यही पेड़-पौधे आगे जाकर हमें प्राण वायु देंगे, पर्यावरण में सहयोग करेंगे। उसी प्रकार शिक्षा भी एक निवेश है जिसका लाभ समाज को होता है।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने ये बातें 1965 में कहीं थीं। तब से लेकर आज तक हम शिक्षा की दृष्टि से बहुत लंबी यात्रा पूरी कर चुके हैं। किन्तु अब भी शिक्षा के स्तर को लेकर बहुत कुछ किया जाना शेष है। हमारी शिक्षा व्यवस्था से बच्चे वास्तव में कितना शिक्षित हो रहे हैं, इसे भी हमें अपनी चर्चा में लाना होगा।
इसलिए बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधारने का सबसे बड़ा ढंग है कि उन्हें शिक्षा का उद्देश्य भी समझाया जाए। मात्र स्कूल जाना ही पढ़ाई नहीं है। पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए, जो बच्चों को प्रश्न पूछना सिखाए, उन्हें ज्ञान अर्जित करना और ज्ञान बढ़ाना सिखाए, जो जीवन के हर मोड़ पर उन्हें कुछ ना कुछ सीखते रहने के लिए प्रेरित करे।
स्वामी विवेकानंद भी कहते थे कि शिक्षा का अर्थ मात्र पुस्तकी ज्ञान पाना नहीं है। शिक्षा का लक्ष्य है चरित्र का निर्माण, शिक्षा का अर्थ है मस्तिष्क को सुदृढ़ करना, अपनी बौद्धिक शक्ति को बढ़ाना, जिससे स्वयं के पैरों पर खड़ा हुआ जा सके।
21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में, जिस तरह की कुशलता और योग्यता की आवश्यकता है, उसमें हम सभी का दायित्व है कि युवाओं के पास कोई न कोई कौशल अवश्य हो। हमें युवाओं को ऐसा बनाना होगा कि वे अलग सोच व तर्क के साथ सोचें और अपने काम में रचनात्मक दिखें।
आज की कार्यावली में जिस एक और महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा होनी है, वह है आंतरिक सुरक्षा। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए किस प्रकार की चुनौतियां हैं, इन चुनौतियों से कैसे निपट सकते हैं, कैसे एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, इस पर चर्चा होनी है। देश की आंतरिक सुरक्षा को तब तक सुदृढ़ नहीं किया जा सकता, जब तक प्रज्ञता साँझाकरण पर केंद्रित ना हो, एजेंसियों में अधिक तालमेल ना हो, हमारी पुलिस आधुनिक सोच और तकनीक से लैस ना हो। हमने इस मोर्चे पर बड़ा लंबा मार्ग तय किया है किन्तु हमें लगातार अपनी कार्य-कुशलता और क्षमता को बढ़ाते चलना है। हमें हर समय सतर्क और अद्यतन रहना है।
अं परि की बैठक बहुत ही खुले हुए वातावरण में, बहुत ही स्पष्ट होकर एक दूसरे के विचार सुनने और साझा करने का अवसर देती है। मुझे आशा है कि आप कार्यावली के सभी विषयों पर खुलकर अपनी राय देंगे, अपने सुझाव देंगे। आपके सुझाव बहुत मूल्यवान होंगे।
जितना ही हम इन मुख्य विषयों पर एक राय बनाने में सफल होंगे, उतना ही कठिनाइयों को पार करना सरल होगा। इस प्रक्रिया में हम न केवल सहकारी संघवाद की भावना और केंद्र-राज्य सम्बन्धों को सुदृढ़ करेंगे बल्कि देश के नागरिकों के श्रेष्ठ भविष्य को भी सुनिश्चित करेंगे।
अं परि की बैठक बहुत ही खुले हुए वातावरण में, बहुत ही स्पष्ट होकर एक दूसरे के विचार सुनने और साझा करने का अवसर देती है। मुझे आशा है कि आप कार्यावली के सभी विषयों पर खुलकर अपनी राय देंगे, अपने सुझाव देंगे। आपके सुझाव बहुत मूल्यवान होंगे।
जितना ही हम इन मुख्य विषयों पर एक राय बनाने में सफल होंगे, उतना ही कठिनाइयों को पार करना सरल होगा। इस प्रक्रिया में हम न केवल सहकारी संघवाद की भावना और केंद्र-राज्य सम्बन्धों को सुदृढ़ करेंगे बल्कि देश के नागरिकों के श्रेष्ठ भविष्य को भी सुनिश्चित करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राज्यों से गुप्तचरी सूचना साझा करने को कहा जिससे देश को आंतरिक सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से लड़ने में ‘‘चौकन्ना’’ तथा ‘‘अद्यतन’’ रहने में सहायता मिलेगी।
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है |
आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है |
उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का
अनुसरण कर हम अपने जीवन को
उचित शैली में ढाल सकते हैं |
आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
https://www.youtube.com/watch?v=kBzVDhcnrvA&index=57&list=PLaypC1Q7dot2BbeOFAWZW-beQPcYr1G8Wअंतरर्राज्य परिषद् की 11वीं बैठक को प्रमं का उद्घाटन सम्बोधन
अंतरर्राज्य परिषद् की 11वीं बैठक को प्रमं का उद्घाटन सम्बोधन
नदि तिलक। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुमं व उप-राज्यपाल और कबीना सहयोगियों, से अंतर्राज्यीय परि की इस मुख्य बैठक के उद्घाटन सम्बोधन में स्वागत करते हुए प्र मं मोदी ने उनसे कहा- ऐसे अवसर कम ही आते हैं जब केंद्र और राज्यों का नेतृत्व एक साथ एक स्थान पर उपस्थित हो। मोदी ने इसे आम जनता के हितों पर बात करने के लिए, उनकी समस्याओं के निपटारे के लिए, एक साथ मिलकर ठोस निर्णय लेने के लिए सहकारी संघवाद का यह मंच, श्रेष्ठ उदाहरण तथा संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि को दर्शाने वाला भी बताया है।
मोदी ने 3 डी पर बल देते कहा प्राय: 16 वर्ष पूर्व इसी मंच से कही गई पूर्व प्रधानमंत्री और हमारे श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की बात से शुरु करूंगा, वाजपेयी जी ने कहा था कि-
“भारत जैसे बड़े और विविधता से भरे हुए लोकतंत्र में Debate यानि वाद-विवाद, Deliberation यानि विवेचना और Discussion यानि विचार-विमर्श से ही ऐसी नीतियां बन सकती हैं जो जमीनी सच्चाई का ध्यान रखती हों। ये तीनों बातें, नीतियों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने में भी मदद करती हैं। इंटर स्टेट काउंसिल एक ऐसा मंच है जिसका इस्तेमाल नीतियों को बनाने और उन्हें लागू करने में किया जा सकता है। इसलिए लोकतंत्र, समाज और हमारी राज्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, इस मंच का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए”।
मोदी ने इसे केंद्र -राज्य और अंतर्राज्यीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का सबसे बड़ा मंच बताया। जबकि 2006 के बाद लंबे अंतराल तक ये बैठक नहीं हो पाई, किन्तु गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का प्रयास पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते कहा कि गत एक वर्ष में वे देश भर की पाँच आंचलिक परिषदों की बैठक बुला चुके हैं। मोदी ने कहा कि इस मध्य संवाद और संपर्क का क्रम बढ़ने का ही परिणाम है कि आज हम सभी यहां एकत्र हुए हैं।
“भारत जैसे बड़े और विविधता से भरे हुए लोकतंत्र में Debate यानि वाद-विवाद, Deliberation यानि विवेचना और Discussion यानि विचार-विमर्श से ही ऐसी नीतियां बन सकती हैं जो जमीनी सच्चाई का ध्यान रखती हों। ये तीनों बातें, नीतियों को प्रभावी तरीके से अमल में लाने में भी मदद करती हैं। इंटर स्टेट काउंसिल एक ऐसा मंच है जिसका इस्तेमाल नीतियों को बनाने और उन्हें लागू करने में किया जा सकता है। इसलिए लोकतंत्र, समाज और हमारी राज्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, इस मंच का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिए”।
मोदी ने इसे केंद्र -राज्य और अंतर्राज्यीय सम्बन्धों को सुदृढ़ करने का सबसे बड़ा मंच बताया। जबकि 2006 के बाद लंबे अंतराल तक ये बैठक नहीं हो पाई, किन्तु गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का प्रयास पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते कहा कि गत एक वर्ष में वे देश भर की पाँच आंचलिक परिषदों की बैठक बुला चुके हैं। मोदी ने कहा कि इस मध्य संवाद और संपर्क का क्रम बढ़ने का ही परिणाम है कि आज हम सभी यहां एकत्र हुए हैं।
मोदी ने कहा देश का विकास तभी संभव है जब केंद्र और राज्य सरकारें कंधे से कंधा मिलाकर चलें। किसी भी सरकार के लिए कठिन होगा कि वो मात्र अपने दम पर कोई योजना को सफल कर सके। इसलिए दायित्वों के साथ ही वित्तीय संसाधनों की भी अपनी महत्ता है। 14वें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की स्वीकृति के साथ केंद्रीय करों में राज्यों की भागीदारी 32 % से बढ़ाकर 42 % कर दी गई है। अर्थात अब राज्यों के पास अधिक राशि आ रही है जिसका उपयोग वो अपनी आवश्यकतानुसार कर रहे हैं। राज्यों को केंद्र से वर्ष 2014-15 की तुलना में गत वर्ष 2015-16 के 21 % अधिक राशि मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त करते कहा इसी प्रकार पंचायतों और स्थानीय निकायों को 14वें वित्त आयोग की अवधि में 2 लाख 87 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी जो विगत से काफी अधिक है।
प्राकृतिक संसाधनों से होने वाली आय में भी राज्यों के अधिकारों का ध्यान रखा जा रहा है। कोयला खदानों की नीलामी से राज्यों को आने वाले वर्षों में 3 लाख 35 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। कोयले के अतिरिक्त भी दूसरे खनन से राज्यों को 18 हजार करोड़ रुपए की राशी मिलेगी। इसी प्रकार एक कानून में परिवर्तन द्वारा बैंक में रखे हुए प्राय: 40 हजार करोड़ रुपए को भी राज्यों को देने का प्रयास किया जा रहा है।
व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ने के कारण जो राशी बच रही है, उसे भी केंद्र सरकार आपके साथ साझा करना चाहती है। एक उदाहरण केरोसिन का ही है। गावों में बिजली कनेक्शन बढ़ रहे हैं। आने वाले तीन वर्ष में सरकार 5 करोड़ नए गैस कनेक्शन देने जा रही है। रसोई गैस की आपूर्ति भी और बढ़ेगी। इन प्रयासों का सीधा प्रभाव केरोसिन की खपत पर पड़ा है। अभी चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने शहर को केरोसिन मुक्त क्षेत्र घोषित किया है। अब केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसके तहत केरोसिन की खपत में कमी करने पर, केंद्र छूट के रूप में जो पैसा खर्च करता था, उसका 75 % राज्यों को अनुदान के रूप में देगा। कर्नाटक सरकार ने इस पहल पर तेजी दिखाते हुए अपना प्रस्ताव पेट्रोलियम मंत्रालय को भेज दिया था, जिसे स्वीकार करने के बाद राज्य सरकार को अनुदान का भुगतान कर दिया गया है। यदि सभी राज्य केरोसिन की खपत को 25 % कम करने का निर्णय लेते हैं और इस पर व्यवहार करके दिखाते हैं, तो इस वर्ष उन्हें प्राय: 1600 करोड़ रुपए के अनुदान का लाभ मिल सकता है।
उनके सम्बोधन में प्राय: ये बातें भी कही गईं -
व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ने के कारण जो राशी बच रही है, उसे भी केंद्र सरकार आपके साथ साझा करना चाहती है। एक उदाहरण केरोसिन का ही है। गावों में बिजली कनेक्शन बढ़ रहे हैं। आने वाले तीन वर्ष में सरकार 5 करोड़ नए गैस कनेक्शन देने जा रही है। रसोई गैस की आपूर्ति भी और बढ़ेगी। इन प्रयासों का सीधा प्रभाव केरोसिन की खपत पर पड़ा है। अभी चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने शहर को केरोसिन मुक्त क्षेत्र घोषित किया है। अब केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की है जिसके तहत केरोसिन की खपत में कमी करने पर, केंद्र छूट के रूप में जो पैसा खर्च करता था, उसका 75 % राज्यों को अनुदान के रूप में देगा। कर्नाटक सरकार ने इस पहल पर तेजी दिखाते हुए अपना प्रस्ताव पेट्रोलियम मंत्रालय को भेज दिया था, जिसे स्वीकार करने के बाद राज्य सरकार को अनुदान का भुगतान कर दिया गया है। यदि सभी राज्य केरोसिन की खपत को 25 % कम करने का निर्णय लेते हैं और इस पर व्यवहार करके दिखाते हैं, तो इस वर्ष उन्हें प्राय: 1600 करोड़ रुपए के अनुदान का लाभ मिल सकता है।
उनके सम्बोधन में प्राय: ये बातें भी कही गईं -
केंद्र -राज्य सम्बन्धों के साथ ही अं परि उन विषयों पर भी चर्चा का मंच है जो देश की बड़ी संख्या से जुड़े हुए हैं। कैसे नीति-निर्धारण के स्तर पर इन मुद्दों को सुलझाने के लिए एक राय बनाई जा सकती है, कैसे एक दूसरे से परस्पर जुड़े विषयों को सुलझाया जा सकता है।
इसलिए इस बार अं परि में पुंछी आयोग की रपट के साथ ही तीन और मुख्य विषयों को कार्यावली में रखा गया है।
पहला है- ‘आधार’ । संसद से ‘आधार’ एक्ट 2016 पास हो चुका है। इस कानून के पास होने के बाद अब हमें चाहे छूट हो या फिर सभी दूसरी सुविधाएं, ‘कहते में नगत स्थांतरण’ के लिए आधार के प्रयोग की सुविधा मिल गई है। 128 करोड़ की संख्या वाले हमारे देश में अब तक 102 करोड़ लोगों को आधार कार्ड बांटे जा चुके हैं। यानि अब देश की 79 % जनसंख्या के पास आधार कार्ड है। यदि वयस्कों की बात करें तो देश के 96 % नागरिकों के पास आधार कार्ड है। आप सभी के समर्थन से इस वर्ष के अंत तक हम देश के हर नागरिक को आधार कार्ड से जोड़ लेंगे।
आज के समय में साधारण सा आधार कार्ड, लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है। सरकारी छूट या सहायता पर जिस व्यक्ति का अधिकार है, अब उसे ही इसका लाभ मिल रहा है, पैसा सीधे उसी के खाते में जा रहा है। इससे पारदर्शिता तो आई ही है, हजारों करोड़ रुपए की बचत हो रही है जिसे विकास के काम पर व्यय किया जा रहा है।
मित्रों, बाबा साहेब अम्बेडकर ने लिखा था कि- “भारत जैसे देश में सामाजिक सुधार का मार्ग उतना ही कठिन है, उतनी ही अड़चनों से भरा हुआ है जितना स्वर्ग जाने का मार्ग। जब आप सामाजिक सुधार की सोचते हैं तो आपको मित्र कम, आलोचक अधिक मिलते हैं” ।
आज भी उनकी लिखी बातें, उतनी ही प्रासंगिक है। इसलिए आलोचनाओं से बचते हुए, हमें एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए, सामाजिक सुधार की योजनाओं को आगे बढ़ाने पर बल देना होगा। इनमें से बहुत सी योजनाओं की रूप-रेखा, नीति आयोग में मुख्यमंत्रियों के ही उप-समूह ने तैयार की है।
अं परि में जिस एक और मुख्य विषय पर चर्चा होनी है, वह है शिक्षा । भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारे युवा ही हैं। 30 करोड़ से अधिक बच्चे अभी स्कूल जाने वाली आयु में हैं। इसलिए हमारे देश में आने वाले कई वर्षों तक विश्व को कुशल जनशक्ति देने की क्षमता है। केंद्र और राज्यों को मिलकर बच्चों को शिक्षा का ऐसा वातावरण देना होगा जिसमें वे आज की आवश्यकतानुसार स्वयं को तैयार कर सकें, अपने कौशल का विकास कर सकें।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के शब्दों में कहें तो- शिक्षा एक निवेश है। हम पेड़-पौधों को लगाते समय उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। हमें पता होता है कि यही पेड़-पौधे आगे जाकर हमें प्राण वायु देंगे, पर्यावरण में सहयोग करेंगे। उसी प्रकार शिक्षा भी एक निवेश है जिसका लाभ समाज को होता है।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने ये बातें 1965 में कहीं थीं। तब से लेकर आज तक हम शिक्षा की दृष्टि से बहुत लंबी यात्रा पूरी कर चुके हैं। किन्तु अब भी शिक्षा के स्तर को लेकर बहुत कुछ किया जाना शेष है। हमारी शिक्षा व्यवस्था से बच्चे वास्तव में कितना शिक्षित हो रहे हैं, इसे भी हमें अपनी चर्चा में लाना होगा।
इसलिए बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधारने का सबसे बड़ा ढंग है कि उन्हें शिक्षा का उद्देश्य भी समझाया जाए। मात्र स्कूल जाना ही पढ़ाई नहीं है। पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए, जो बच्चों को प्रश्न पूछना सिखाए, उन्हें ज्ञान अर्जित करना और ज्ञान बढ़ाना सिखाए, जो जीवन के हर मोड़ पर उन्हें कुछ ना कुछ सीखते रहने के लिए प्रेरित करे।
स्वामी विवेकानंद भी कहते थे कि शिक्षा का अर्थ मात्र पुस्तकी ज्ञान पाना नहीं है। शिक्षा का लक्ष्य है चरित्र का निर्माण, शिक्षा का अर्थ है मस्तिष्क को सुदृढ़ करना, अपनी बौद्धिक शक्ति को बढ़ाना, जिससे स्वयं के पैरों पर खड़ा हुआ जा सके।
21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में, जिस तरह की कुशलता और योग्यता की आवश्यकता है, उसमें हम सभी का दायित्व है कि युवाओं के पास कोई न कोई कौशल अवश्य हो। हमें युवाओं को ऐसा बनाना होगा कि वे अलग सोच व तर्क के साथ सोचें और अपने काम में रचनात्मक दिखें।
पहला है- ‘आधार’ । संसद से ‘आधार’ एक्ट 2016 पास हो चुका है। इस कानून के पास होने के बाद अब हमें चाहे छूट हो या फिर सभी दूसरी सुविधाएं, ‘कहते में नगत स्थांतरण’ के लिए आधार के प्रयोग की सुविधा मिल गई है। 128 करोड़ की संख्या वाले हमारे देश में अब तक 102 करोड़ लोगों को आधार कार्ड बांटे जा चुके हैं। यानि अब देश की 79 % जनसंख्या के पास आधार कार्ड है। यदि वयस्कों की बात करें तो देश के 96 % नागरिकों के पास आधार कार्ड है। आप सभी के समर्थन से इस वर्ष के अंत तक हम देश के हर नागरिक को आधार कार्ड से जोड़ लेंगे।
आज के समय में साधारण सा आधार कार्ड, लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है। सरकारी छूट या सहायता पर जिस व्यक्ति का अधिकार है, अब उसे ही इसका लाभ मिल रहा है, पैसा सीधे उसी के खाते में जा रहा है। इससे पारदर्शिता तो आई ही है, हजारों करोड़ रुपए की बचत हो रही है जिसे विकास के काम पर व्यय किया जा रहा है।
मित्रों, बाबा साहेब अम्बेडकर ने लिखा था कि- “भारत जैसे देश में सामाजिक सुधार का मार्ग उतना ही कठिन है, उतनी ही अड़चनों से भरा हुआ है जितना स्वर्ग जाने का मार्ग। जब आप सामाजिक सुधार की सोचते हैं तो आपको मित्र कम, आलोचक अधिक मिलते हैं” ।
आज भी उनकी लिखी बातें, उतनी ही प्रासंगिक है। इसलिए आलोचनाओं से बचते हुए, हमें एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए, सामाजिक सुधार की योजनाओं को आगे बढ़ाने पर बल देना होगा। इनमें से बहुत सी योजनाओं की रूप-रेखा, नीति आयोग में मुख्यमंत्रियों के ही उप-समूह ने तैयार की है।
अं परि में जिस एक और मुख्य विषय पर चर्चा होनी है, वह है शिक्षा । भारत की सबसे बड़ी शक्ति हमारे युवा ही हैं। 30 करोड़ से अधिक बच्चे अभी स्कूल जाने वाली आयु में हैं। इसलिए हमारे देश में आने वाले कई वर्षों तक विश्व को कुशल जनशक्ति देने की क्षमता है। केंद्र और राज्यों को मिलकर बच्चों को शिक्षा का ऐसा वातावरण देना होगा जिसमें वे आज की आवश्यकतानुसार स्वयं को तैयार कर सकें, अपने कौशल का विकास कर सकें।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के शब्दों में कहें तो- शिक्षा एक निवेश है। हम पेड़-पौधों को लगाते समय उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। हमें पता होता है कि यही पेड़-पौधे आगे जाकर हमें प्राण वायु देंगे, पर्यावरण में सहयोग करेंगे। उसी प्रकार शिक्षा भी एक निवेश है जिसका लाभ समाज को होता है।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी ने ये बातें 1965 में कहीं थीं। तब से लेकर आज तक हम शिक्षा की दृष्टि से बहुत लंबी यात्रा पूरी कर चुके हैं। किन्तु अब भी शिक्षा के स्तर को लेकर बहुत कुछ किया जाना शेष है। हमारी शिक्षा व्यवस्था से बच्चे वास्तव में कितना शिक्षित हो रहे हैं, इसे भी हमें अपनी चर्चा में लाना होगा।
इसलिए बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधारने का सबसे बड़ा ढंग है कि उन्हें शिक्षा का उद्देश्य भी समझाया जाए। मात्र स्कूल जाना ही पढ़ाई नहीं है। पढ़ाई ऐसी होनी चाहिए, जो बच्चों को प्रश्न पूछना सिखाए, उन्हें ज्ञान अर्जित करना और ज्ञान बढ़ाना सिखाए, जो जीवन के हर मोड़ पर उन्हें कुछ ना कुछ सीखते रहने के लिए प्रेरित करे।
स्वामी विवेकानंद भी कहते थे कि शिक्षा का अर्थ मात्र पुस्तकी ज्ञान पाना नहीं है। शिक्षा का लक्ष्य है चरित्र का निर्माण, शिक्षा का अर्थ है मस्तिष्क को सुदृढ़ करना, अपनी बौद्धिक शक्ति को बढ़ाना, जिससे स्वयं के पैरों पर खड़ा हुआ जा सके।
21वीं सदी की अर्थव्यवस्था में, जिस तरह की कुशलता और योग्यता की आवश्यकता है, उसमें हम सभी का दायित्व है कि युवाओं के पास कोई न कोई कौशल अवश्य हो। हमें युवाओं को ऐसा बनाना होगा कि वे अलग सोच व तर्क के साथ सोचें और अपने काम में रचनात्मक दिखें।
आज की कार्यावली में जिस एक और महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा होनी है, वह है आंतरिक सुरक्षा। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए किस प्रकार की चुनौतियां हैं, इन चुनौतियों से कैसे निपट सकते हैं, कैसे एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, इस पर चर्चा होनी है। देश की आंतरिक सुरक्षा को तब तक सुदृढ़ नहीं किया जा सकता, जब तक प्रज्ञता साँझाकरण पर केंद्रित ना हो, एजेंसियों में अधिक तालमेल ना हो, हमारी पुलिस आधुनिक सोच और तकनीक से लैस ना हो। हमने इस मोर्चे पर बड़ा लंबा मार्ग तय किया है किन्तु हमें लगातार अपनी कार्य-कुशलता और क्षमता को बढ़ाते चलना है। हमें हर समय सतर्क और अद्यतन रहना है।
अं परि की बैठक बहुत ही खुले हुए वातावरण में, बहुत ही स्पष्ट होकर एक दूसरे के विचार सुनने और साझा करने का अवसर देती है। मुझे आशा है कि आप कार्यावली के सभी विषयों पर खुलकर अपनी राय देंगे, अपने सुझाव देंगे। आपके सुझाव बहुत मूल्यवान होंगे।
जितना ही हम इन मुख्य विषयों पर एक राय बनाने में सफल होंगे, उतना ही कठिनाइयों को पार करना सरल होगा। इस प्रक्रिया में हम न केवल सहकारी संघवाद की भावना और केंद्र-राज्य सम्बन्धों को सुदृढ़ करेंगे बल्कि देश के नागरिकों के श्रेष्ठ भविष्य को भी सुनिश्चित करेंगे।
अं परि की बैठक बहुत ही खुले हुए वातावरण में, बहुत ही स्पष्ट होकर एक दूसरे के विचार सुनने और साझा करने का अवसर देती है। मुझे आशा है कि आप कार्यावली के सभी विषयों पर खुलकर अपनी राय देंगे, अपने सुझाव देंगे। आपके सुझाव बहुत मूल्यवान होंगे।
जितना ही हम इन मुख्य विषयों पर एक राय बनाने में सफल होंगे, उतना ही कठिनाइयों को पार करना सरल होगा। इस प्रक्रिया में हम न केवल सहकारी संघवाद की भावना और केंद्र-राज्य सम्बन्धों को सुदृढ़ करेंगे बल्कि देश के नागरिकों के श्रेष्ठ भविष्य को भी सुनिश्चित करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राज्यों से गुप्तचरी सूचना साझा करने को कहा जिससे देश को आंतरिक सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से लड़ने में ‘‘चौकन्ना’’ तथा ‘‘अद्यतन’’ रहने में सहायता मिलेगी।
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है |आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है | उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का अनुसरण कर
हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
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Monday, July 11, 2016
भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी !
भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी !
नदि तिलक। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई ने अपने दीक्षांत समारोह की पोशाक के लिए खादी का चयन किया है। गुजरात विश्वविद्यालय के बाद अब खादी ने प्रमुख भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई के अधिकारियों के दिल में स्थान बनाया है। खादी अपनाने के बारे में आग्रह और लोकप्रियता से आकर्षित होकर संस्थान ने दीक्षांत समारोह के समय छात्रों द्वारा पहने जाने के लिए 3,500 खादी के अंगवस्त्रम बनाने को कहा गया है। यह एक महत्वपूर्ण पग है और यह दर्शाता है कि खादी का स्थान जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ रहा है। भाप्रौसं मुंबई के निदेशक प्रोफेसर देवांग खाखर ने कहा कि खादी हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है और छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना भरने के लिए हमने खादी को अपनाया है।
आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
http://shikshaadarpan.blogspot.in/2016/07/blog-post_11.html
पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है | उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
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भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी !
भाप्रौसं मुंबई की दीक्षांत समारोह पोशाक होगी खादी !
नदि तिलक। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई ने अपने दीक्षांत समारोह की पोशाक के लिए खादी का चयन किया है। गुजरात विश्वविद्यालय के बाद अब खादी ने प्रमुख भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भाप्रौसं), मुंबई के अधिकारियों के दिल में स्थान बनाया है। खादी अपनाने के बारे में आग्रह और लोकप्रियता से आकर्षित होकर संस्थान ने दीक्षांत समारोह के समय छात्रों द्वारा पहने जाने के लिए 3,500 खादी के अंगवस्त्रम बनाने को कहा गया है। यह एक महत्वपूर्ण पग है और यह दर्शाता है कि खादी का स्थान जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ रहा है। भाप्रौसं मुंबई के निदेशक प्रोफेसर देवांग खाखर ने कहा कि खादी हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है और छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना भरने के लिए हमने खादी को अपनाया है।
आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक
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पूरा परिवेश पश्चिम की भेंट चढ़ गया है | उसे संस्कारित, योग, आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवन को उचित शैली में ढाल सकते हैं | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
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