Monday, April 5, 2010
परिवार
पश्चिमी वातावरण का दुष्प्रभाव हमारे संस्कारों पर हो रहा है,जिसके परिणाम स्वरूप हमारी परिवारिक एकता टूटती जा रही है.हर कोई अपनी स्वतंत्रता चाहता है. पुत्र सोलह वर्ष का होने पर उसके पिताजी उसे कुछ कह नहीं सकते. पिताजी बीमार होने पर भी पुत्र उनकी शुश्रूषा नहीं करता. हमारी संस्कृति करूणा से भरी है. किसी को भी दुख होने पर हम व्यथित हो जाते हैं, किन्तु पश्चिमी संस्कृति के ज्वार में हमारी यह भावना नष्ट होती जा रही है.एसे हालात में भी सत्संगी का परिवार एक आदर्श परिवार होना चाहिए. विग्यान ने बहुत विकास किया. लाईट मिली,अभिनव रास्तों का निर्माण हुआ. विग्यान ने मनुष्य को चंद्रमा पर भेजा,इंटरनेट और टी.वी. दिया,किन्तु उसमें अश्लीलता , मारामारी , चोरी इन सभी में लड़कों का आकर्षण होता है.टी.वी. को तो माता पिता भी इकट्ठा होकर देखते हैं. उसमें विवेक कैसा रहता ?सत्संग से,शास्त्रों के पठन से विवेक उदय होता है.अच्छी वस्तु ग्रहण करके बुरी वस्तुओं का त्याग करना वह हमें शास्त्र सिखाते हैं. अश्लील पुस्तक पढ़ने से जीवन बर्बाद होता है.
आज टी.वी. प्रत्येक घर में बैठ गया है,और सभी आनंद लूटते हैं माता-पिता,बेटा-बेटी,बहू,छोटे बालक सभी टी.वी. के सामने बैठ जाएँ फिर बालकों को बुजुर्गों के प्रति आदरभाव कैसे रहेगा ? परिवार में वृद्धों के लिए हमेशा आदर होना चाहिए और, बड़ों को भी एसा वर्तन रखना चाहिए कि यह मेरा परिवार है, उसे ऊपर उठाना है. लड़कों को पहले से ग्यान देना चाहिए. बालक को बचपन से ही हमारे संस्कार घरमंदिर से मिलने लगते हैं.
टी.वी. देखकर बालक क्या सीखेगा? छीनाझपटी, कलह,चोरी-डकैती,मद्यपान,जुआ खेलना इत्यादि,यह जानते हुए भी टी.वी.के मोहवश मनुष्य अपनी प्रतिष्ठा ,धन,समृद्धि ,खानदान,सब गवां देते हैं. हमारे संस्कार लुप्त होते गये.
हम अपने घर को मंदिर बनाएँ. प्रतिदिन शाम को घरसत्संग करें. गीता-भागवत,वचनामृत इत्यादि का पठन करें. हम बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए प्रबंध करते हैं,ठीक वैसे अच्छे संस्कार के लिए भी घरसत्संग का प्रबंध करें. भौतिक शिक्षा से जीवन-निर्माण नहीं होता,वह अध्यात्म संस्कारों से होता है. आज घर-घर में कलह, अशांति और दुख देखने को मिलता है.उसका कारण है कि ,धर्म से,अध्यात्म से, हमने मुख मोड़ लिया है. आध्यात्मिकता से जीवन में शांति मिलेगी.
जितना भौतिकवाद बढ़ेगा,उतनी संपति बढ़ेगी,और मनुष्य में दुर्गुण भी उतने ही बढ़ेगें. अतः घर में पहले से संतानों पर ध्यान दीजिए. संतानों को धमकाएँ मत, प्रेम से बात करें. प्रेम और वात्सल्य से की गयी बात इनके दिमाग में बैठेगी. बालकों की बात,चित्त देकर सुनें और उनको समझने का प्रयत्न करें,तो आपस में आत्मीयता बढ़ेगी और शांति मिलेगी.
टी.वी.की तरह अश्लील सामयिक भी हमारे संस्कारों कि धुलाई करते हैं,अतः अच्छा पढ़े. अच्छा पढ़ने से विचार भी अच्छे आते हैं,जो जीवन निर्माण करते हैं.अच्छे ग्रंथ घर में बसाएँ.भावी पीढ़ी को उनसे संस्कार प्राप्त होंगे.
गृहस्थाश्रम की वजह से धन की आवश्यकता होगी ही,और नौकरी,व्यवसाय सब करना होगा.किन्तु उसमें भी समय निकालकर सांयकाल एक-आध घंटा बच्चों के साथ व्यतीत करें.उनके साथ आनंद-प्रमोद करें,खेल करें,बैठकर थोड़ी बातें करें,इससे आत्मीयता बढ़ेगी,और बच्चे हमारी रूचि के अनुसार वर्तन करेंगे. प्रतिदिन एक समय का भोजन साथ में बैठकर लिया करें. इससे भी बच्चों से हमारी आत्मीयता बढ़ेगी.सह्भोजन करने वाले के मन भी साथ में एक बनकर रहतें हैं.
हमारे कुटुम्ब सुधरेगा तो समाज सुधरेगा और समाज सुधरेगा तो राष्ट्र सुधरेगा. अतः सत्संगी के घर में मनमुटाव कभी नहीं होना चाहिए. घर स्वच्छ,पवित्र रहना चाहिए.उसमें प्रवेश करते ही मन शांत हो जाए. प्रतिदिन भगवान की मूर्ति के समक्ष बैठकर मौन धारण करें. अंतस्थ हो,भगवान की धुन-प्रार्थना करें. सबसे ऊँची प्रेम सगाई.चाहे जैसा भी व्यक्ति हो उसको भी प्रेम से जीता जा सकता है. एक व्यक्ति का परिवर्तन होगा तो पूरा कुटुम्ब का परिवर्तन होगा.फिर समाज एवं देश तथा ब्रह्मांड का परिवर्तन होगा.
साभार :- स्वामीनारायण प्रकाश
पूरा परिवेश पश्चिमकी भेंट चढ़ गया है.उसे संस्कारित,योग,आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवनको उचित शैली में ढाल सकते हैं! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
पश्चिमी वातावरण का दुष्प्रभाव हमारे संस्कारों पर हो रहा है,जिसके परिणाम स्वरूप हमारी परिवारिक एकता टूटती जा रही है.हर कोई अपनी स्वतंत्रता चाहता है. पुत्र सोलह वर्ष का होने पर उसके पिताजी उसे कुछ कह नहीं सकते. पिताजी बीमार होने पर भी पुत्र उनकी शुश्रूषा नहीं करता. हमारी संस्कृति करूणा से भरी है. किसी को भी दुख होने पर हम व्यथित हो जाते हैं, किन्तु पश्चिमी संस्कृति के ज्वार में हमारी यह भावना नष्ट होती जा रही है.एसे हालात में भी सत्संगी का परिवार एक आदर्श परिवार होना चाहिए. विग्यान ने बहुत विकास किया. लाईट मिली,अभिनव रास्तों का निर्माण हुआ. विग्यान ने मनुष्य को चंद्रमा पर भेजा,इंटरनेट और टी.वी. दिया,किन्तु उसमें अश्लीलता , मारामारी , चोरी इन सभी में लड़कों का आकर्षण होता है.टी.वी. को तो माता पिता भी इकट्ठा होकर देखते हैं. उसमें विवेक कैसा रहता ?सत्संग से,शास्त्रों के पठन से विवेक उदय होता है.अच्छी वस्तु ग्रहण करके बुरी वस्तुओं का त्याग करना वह हमें शास्त्र सिखाते हैं. अश्लील पुस्तक पढ़ने से जीवन बर्बाद होता है.
आज टी.वी. प्रत्येक घर में बैठ गया है,और सभी आनंद लूटते हैं माता-पिता,बेटा-बेटी,बहू,छोटे बालक सभी टी.वी. के सामने बैठ जाएँ फिर बालकों को बुजुर्गों के प्रति आदरभाव कैसे रहेगा ? परिवार में वृद्धों के लिए हमेशा आदर होना चाहिए और, बड़ों को भी एसा वर्तन रखना चाहिए कि यह मेरा परिवार है, उसे ऊपर उठाना है. लड़कों को पहले से ग्यान देना चाहिए. बालक को बचपन से ही हमारे संस्कार घरमंदिर से मिलने लगते हैं.
टी.वी. देखकर बालक क्या सीखेगा? छीनाझपटी, कलह,चोरी-डकैती,मद्यपान,जुआ खेलना इत्यादि,यह जानते हुए भी टी.वी.के मोहवश मनुष्य अपनी प्रतिष्ठा ,धन,समृद्धि ,खानदान,सब गवां देते हैं. हमारे संस्कार लुप्त होते गये.
हम अपने घर को मंदिर बनाएँ. प्रतिदिन शाम को घरसत्संग करें. गीता-भागवत,वचनामृत इत्यादि का पठन करें. हम बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए प्रबंध करते हैं,ठीक वैसे अच्छे संस्कार के लिए भी घरसत्संग का प्रबंध करें. भौतिक शिक्षा से जीवन-निर्माण नहीं होता,वह अध्यात्म संस्कारों से होता है. आज घर-घर में कलह, अशांति और दुख देखने को मिलता है.उसका कारण है कि ,धर्म से,अध्यात्म से, हमने मुख मोड़ लिया है. आध्यात्मिकता से जीवन में शांति मिलेगी.
जितना भौतिकवाद बढ़ेगा,उतनी संपति बढ़ेगी,और मनुष्य में दुर्गुण भी उतने ही बढ़ेगें. अतः घर में पहले से संतानों पर ध्यान दीजिए. संतानों को धमकाएँ मत, प्रेम से बात करें. प्रेम और वात्सल्य से की गयी बात इनके दिमाग में बैठेगी. बालकों की बात,चित्त देकर सुनें और उनको समझने का प्रयत्न करें,तो आपस में आत्मीयता बढ़ेगी और शांति मिलेगी.
टी.वी.की तरह अश्लील सामयिक भी हमारे संस्कारों कि धुलाई करते हैं,अतः अच्छा पढ़े. अच्छा पढ़ने से विचार भी अच्छे आते हैं,जो जीवन निर्माण करते हैं.अच्छे ग्रंथ घर में बसाएँ.भावी पीढ़ी को उनसे संस्कार प्राप्त होंगे.
गृहस्थाश्रम की वजह से धन की आवश्यकता होगी ही,और नौकरी,व्यवसाय सब करना होगा.किन्तु उसमें भी समय निकालकर सांयकाल एक-आध घंटा बच्चों के साथ व्यतीत करें.उनके साथ आनंद-प्रमोद करें,खेल करें,बैठकर थोड़ी बातें करें,इससे आत्मीयता बढ़ेगी,और बच्चे हमारी रूचि के अनुसार वर्तन करेंगे. प्रतिदिन एक समय का भोजन साथ में बैठकर लिया करें. इससे भी बच्चों से हमारी आत्मीयता बढ़ेगी.सह्भोजन करने वाले के मन भी साथ में एक बनकर रहतें हैं.
हमारे कुटुम्ब सुधरेगा तो समाज सुधरेगा और समाज सुधरेगा तो राष्ट्र सुधरेगा. अतः सत्संगी के घर में मनमुटाव कभी नहीं होना चाहिए. घर स्वच्छ,पवित्र रहना चाहिए.उसमें प्रवेश करते ही मन शांत हो जाए. प्रतिदिन भगवान की मूर्ति के समक्ष बैठकर मौन धारण करें. अंतस्थ हो,भगवान की धुन-प्रार्थना करें. सबसे ऊँची प्रेम सगाई.चाहे जैसा भी व्यक्ति हो उसको भी प्रेम से जीता जा सकता है. एक व्यक्ति का परिवर्तन होगा तो पूरा कुटुम्ब का परिवर्तन होगा.फिर समाज एवं देश तथा ब्रह्मांड का परिवर्तन होगा.
साभार :- स्वामीनारायण प्रकाश
पूरा परिवेश पश्चिमकी भेंट चढ़ गया है.उसे संस्कारित,योग,आयुर्वेद का अनुसरण कर हम अपने जीवनको उचित शैली में ढाल सकते हैं! आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
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